जीवन की आपाधापी में
क्या खोया क्या पाया
जब समझ पाए
तब हाथ खाली थे...
अपने हो चुके थे पराये
जीवन के चौराहे पर
हम नितांत अकेले
विस्मित खड़े थे
आखिर हमारे जैसे
सफल आदमी से
चूक कहाँ,
क्यूँ कर हुई...
दिल ने झकझोरा
तुम सफल थे
पर जिनको सीढ़ी बनाकर
तुमने सफलता के शिखर छूये,
आगे बढ्ने के जुनून में
उन्हें तुम स्वयं रोंदते गए
तुम ने जैसा बोया वैसा ही पाया
अब दुःख क्यों,अफसोस क्यों...?
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