Wednesday, October 2, 2024

शर्मशार होती मानवता का गुनहगार कौन

 

आज इंसान सहअस्तित्व तथा वसुधैव कुटुंबकम के मूलमंत्र को भुलाकर आचरण या स्वभाव सभ्य नहीं रह गया है। जरा-जरा सी बातों पर क्रोधित होना, तलवारें खींच लेना…उसे मानव से दानव की श्रेणी में ला रहे हैं।

ज़ब यही दानवता दो देशों के मध्य होते युद्ध में दिखाई देती है तो मन कराह उठता है। जिसने युद्ध की विभीषिका को सहा है समझ सकता है कि बेघर होना, अपनों को खोना, मृत्यु से भी अधिक तकलीफ देह है पर ताकत तथा अहंकार के नशे में डूबे, ताकतवर देशों के राजप्रमुखों को युद्ध की विभीषिका झेल रहे मासूम लोगों की दुःख, तकलीफें, क्रन्दन दिखाई नहीं देता। सुरक्षा के घेरे में कैद इन महानुभावों की नजरों में मरने वाले कीड़े -मकोड़े हैं। ये देश अग्नि को बुझाने की बजाय उसमें घी डालने का काम कर रहे हैं।

 एक युद्ध समाप्त नहीं होता दूसरा शुरू हो जाता है। आज दुनिया तीसरे विश्व युद्ध के मुहाने पर खड़ी है पर किसी को चिंता नहीं है। वे यह भी नहीं सोचते कि युद्ध किसी समस्या का समाधान नहीं वरन पर्यावरण को प्रदूषित करने के साथ-साथ मानवीय समस्याओं को बढ़ाने, उलझाने वाला होता है।

 इंसान अपनी करनी से मानवता को तो शर्मसार कर ही रहा है, स्वयं के लिए भी खाई खोद रहा है। अगर इंसान अभी भी नहीं चेता तो अंततः उसके लिए भयावह होती स्थिति से निकलना असंभव ही होगा।




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