Sunday, September 22, 2024

एक देश एक चुनाव आज की आवश्यकता

 एक देश एक चुनाव आज की आवश्यकता 

 1951-52 से वर्ष 1967 तक लोक सभा और राज्य विधान सभाओं के निर्वाचन अधिकांशतः साथ-साथ कराए गए थे और इसके पश्चात् यह चक्र टूटता गया। कभी बहुमत की कमी तो कभी राजनीतिक साजिश के तहत अनुच्छेद 356 की आड़ लेकर अब तक केंद्र सरकार द्वारा 100 से अधिक बार विधान सभायेँ भंग की गईं। 

 अब स्थिति यह हो गई है कि देश में हर वर्ष, कभी-कभी कुछ ही महीनों के अंतराल में किसी न किसी राज्य के चुनाव करवाये जाते हैं। देश के सदा चुनावी मोड में रहने के कारण चुनाव के समय नेताओं द्वारा एक दूसरे पर अनावश्यक टिप्पणियाँ करने से सामाजिक समरसता तो भंग होती ही है, समाज में अनावश्यक तनाव भी पैदा होता है। बार-बार आदर्श आचार संहिता लागू की जाने के कारण सरकार कोई नीतिगत फैसले नहीं ले पाती। प्रशासनिक और नीतिगत निर्णय तो प्रभावित होते ही हैं, देश के खजाने पर भी भारी बोझ पड़ता है। इसके साथ ही चुनाव ड्यूटी में लगाए गए निर्वाचन अधिकारियों तथा सुरक्षा बलों को लंबे समय तक अपने मूल कर्तव्यों से दूर रहना पड़ता है। वे अपने क्षेत्र में अपने कार्य का निर्वहन नहीं कर पाते।  

इस स्थिति से बचने के लिए भारत के विधि आयोग ने निर्वाचन विधियों में सुधारार्थ अपनी 170 वीं रिपोर्ट में कहा है कि प्रत्येक वर्ष बार-बार चुनावों के इस चक्र का अंत किया जाना चाहिए। हमें उस पूर्व स्थिति का फिर से अवलोकन करना चाहिए जहां लोकसभा और सभी विधानसभाओं के लिए निर्वाचन साथ-साथ किए जाते थे। इसी के साथ समिति ने अपनी रिपोर्ट में विधानसभा और लोकसभा के चुनावों के अगले 100 दिनों में नगर निकायों के चुनावों को भी करवाने की सिफारिश की है। 

 इस पर विचार करने के लिए केंद्र सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया गया। इस कमेटी ने एक देश-एक चुनाव पर अपनी रिपोर्ट पेश की जिसे केंद्रीय मंत्रीमंडल द्वारा मंजूरी मिल गई है। अब इसे आगामी शीतकालीन सत्र में संसद में पेश किया जाएगा। जहां विभिन्न दल इस पर अपनी राय देंगे किन्तु इसको क्रियान्वित करना इतना आसान भी नहीं है क्योंकि एक देश एक चुनाव के मुद्दे पर सभी राजनीतिक दलों के अलग-अलग विचार हैं। यद्यपि कुछ पार्टियां समर्थन भी कर रही हैं लेकिन कुछ दलों का कहना है एक साथ चुनाव से राष्ट्रीय दलों को तो फायदा होगा, लेकिन क्षेत्रीय दलों को इससे नुकसान होगा। इनका मानना है कि अगर एक देश एक चुनाव की व्यवस्था लागू की गई तो राष्ट्रीय मुद्दों के सामने राज्य स्तर के मुद्दे दब जाएंगे जिससे राज्यों का विकास प्रभावित होगा। 

 फिल्म अभिनेता कमल हासन जो जन न्याय केंद्र पार्टी के संस्थापक हैं, ने एक देश-एक चुनाव के प्रस्ताव को खतरनाक और त्रुटिपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि इस तरह के चुनाव कुछ देशों में समस्याएं पैदा कर चुके हैं। इसलिए भारत में इसकी आवश्यकता नहीं है और भविष्य में भी इसकी आवश्यकता नहीं होगी।

 इस संदर्भ में पक्ष-विपक्ष का जो भी मत हो लेकिन अगर देश के आर्थिक और सामाजिक विकास की गति को आगे बढ़ाना है तो देश में एक देश,एक चुनाव की योजना को लागू करना ही होगा।

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