Monday, September 23, 2024

इजराइल और उसकी देशभक्ति

 विज्ञान ने जहाँ लोगों को सुविधाएं दी हैं, उससे भी अधिक लोगों की जिंदगी को अस्थिर किया है इसकी जीती जागती मिसाल है इजराइल का हिज़बुल्लाह जैसे आतंकी संगठन का पुरानी तकनीक के बने, ट्रेस न किये जा सकने वाले उपकरण पेजर में विस्फोटक लगाकर, आतंकियों का नाश करना… अब यह भी अनुमान लगाया जा रहा है कि यही कार्य मोबाइल और लैपटॉप जैसे आधुनिक उपकरणों में भी विस्फोटक लगाकर तो नहीं किया जायेगा । न जाने कब इंसान की सुविधा के लिए बनाये गये उपकरण उसकी मौत का कारण बन जाये।


यह सच है कि इजराइल से जैसे एक छोटे से देश ने अपने दुश्मनों को एक ऐसी तकनीक के जरिये धराशाह कर दिया जिससे पूरा विश्व हतप्रभ तो है ही, स्वयं की सुरक्षा के लिए भी चिंतित हो गया है होना भी चाहिए और इसकी काट भी खोजनी चाहिए।


वैसे भी हम भारतीयों को इजराइल जैसे छोटे से देश से देशभक्ति की भावना ग्रहण करनी चाहिए जहाँ देश का हर नागरिक देश पर हुए हमले को स्वयं पर हुआ हमला मानता है।


Sunday, September 22, 2024

एक देश एक चुनाव आज की आवश्यकता

 एक देश एक चुनाव आज की आवश्यकता 

 1951-52 से वर्ष 1967 तक लोक सभा और राज्य विधान सभाओं के निर्वाचन अधिकांशतः साथ-साथ कराए गए थे और इसके पश्चात् यह चक्र टूटता गया। कभी बहुमत की कमी तो कभी राजनीतिक साजिश के तहत अनुच्छेद 356 की आड़ लेकर अब तक केंद्र सरकार द्वारा 100 से अधिक बार विधान सभायेँ भंग की गईं। 

 अब स्थिति यह हो गई है कि देश में हर वर्ष, कभी-कभी कुछ ही महीनों के अंतराल में किसी न किसी राज्य के चुनाव करवाये जाते हैं। देश के सदा चुनावी मोड में रहने के कारण चुनाव के समय नेताओं द्वारा एक दूसरे पर अनावश्यक टिप्पणियाँ करने से सामाजिक समरसता तो भंग होती ही है, समाज में अनावश्यक तनाव भी पैदा होता है। बार-बार आदर्श आचार संहिता लागू की जाने के कारण सरकार कोई नीतिगत फैसले नहीं ले पाती। प्रशासनिक और नीतिगत निर्णय तो प्रभावित होते ही हैं, देश के खजाने पर भी भारी बोझ पड़ता है। इसके साथ ही चुनाव ड्यूटी में लगाए गए निर्वाचन अधिकारियों तथा सुरक्षा बलों को लंबे समय तक अपने मूल कर्तव्यों से दूर रहना पड़ता है। वे अपने क्षेत्र में अपने कार्य का निर्वहन नहीं कर पाते।  

इस स्थिति से बचने के लिए भारत के विधि आयोग ने निर्वाचन विधियों में सुधारार्थ अपनी 170 वीं रिपोर्ट में कहा है कि प्रत्येक वर्ष बार-बार चुनावों के इस चक्र का अंत किया जाना चाहिए। हमें उस पूर्व स्थिति का फिर से अवलोकन करना चाहिए जहां लोकसभा और सभी विधानसभाओं के लिए निर्वाचन साथ-साथ किए जाते थे। इसी के साथ समिति ने अपनी रिपोर्ट में विधानसभा और लोकसभा के चुनावों के अगले 100 दिनों में नगर निकायों के चुनावों को भी करवाने की सिफारिश की है। 

 इस पर विचार करने के लिए केंद्र सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया गया। इस कमेटी ने एक देश-एक चुनाव पर अपनी रिपोर्ट पेश की जिसे केंद्रीय मंत्रीमंडल द्वारा मंजूरी मिल गई है। अब इसे आगामी शीतकालीन सत्र में संसद में पेश किया जाएगा। जहां विभिन्न दल इस पर अपनी राय देंगे किन्तु इसको क्रियान्वित करना इतना आसान भी नहीं है क्योंकि एक देश एक चुनाव के मुद्दे पर सभी राजनीतिक दलों के अलग-अलग विचार हैं। यद्यपि कुछ पार्टियां समर्थन भी कर रही हैं लेकिन कुछ दलों का कहना है एक साथ चुनाव से राष्ट्रीय दलों को तो फायदा होगा, लेकिन क्षेत्रीय दलों को इससे नुकसान होगा। इनका मानना है कि अगर एक देश एक चुनाव की व्यवस्था लागू की गई तो राष्ट्रीय मुद्दों के सामने राज्य स्तर के मुद्दे दब जाएंगे जिससे राज्यों का विकास प्रभावित होगा। 

 फिल्म अभिनेता कमल हासन जो जन न्याय केंद्र पार्टी के संस्थापक हैं, ने एक देश-एक चुनाव के प्रस्ताव को खतरनाक और त्रुटिपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि इस तरह के चुनाव कुछ देशों में समस्याएं पैदा कर चुके हैं। इसलिए भारत में इसकी आवश्यकता नहीं है और भविष्य में भी इसकी आवश्यकता नहीं होगी।

 इस संदर्भ में पक्ष-विपक्ष का जो भी मत हो लेकिन अगर देश के आर्थिक और सामाजिक विकास की गति को आगे बढ़ाना है तो देश में एक देश,एक चुनाव की योजना को लागू करना ही होगा।

Monday, September 16, 2024

मेरी नई पुस्तक

 नई किताब

भूल गए हम जिनको

सुधा आदेश

किताब वेबसाइट और अमेजन फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध है!

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स्त्रियों को सदा अबला कहा जाता है लेकिन अगर हम अपने देश के समृद्ध और गौरवशाली अतीत पर नजर डालें तो हमें हमारे देश में ऐसी वीरांगनाओं की कमी नहीं मिलेगी जिन्होंने अपने देश के लिए हँसते-हँसते अपने प्राण न्योछावर कर दिये। यह हमारा दुर्भाग्य है कि हमारे इतिहासकार उनके योगदान के बारे में मौन रहे हैं। इसका कारण शायद यह है कि हमारा देश पहले मुगलों का तथा बाद में अंग्रेजों के आधिपत्य में रहा जिन्होंने हमारी सभ्यता और संस्कृति को कुचलने के साथ हमारे मस्तिष्क को भी कुंद बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

 भारत को स्वतंत्र कराने जितना योगदान पुरुषों का रहा है उतना ही महिलाओं का भी, चाहे वह सन 1857 का स्वतन्त्रता संग्राम रहा हो या बाद का। सन 1857 से पहले भी अनेक वीरांगनाओं ने अपने राज्य को दुश्मनों की नजर से बचाने के लिए हथियार उठाए थे। रानी झाँसी लक्ष्मी बाई का नाम तो हम सब जानते हैं। उनके बारे में बहुत कुछ लिखा गया है किन्तु उसी समय गोरखपुर के निकट तुलसीपुर की रानी ईश्वरी देवी के त्याग और बलिदान के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं।              

 कश्मीर की रानी दिद्दा हो या काकतीय राजवंश की रानी रुद्रमा देवी, मध्य प्रदेश की गोंड़ रानी दुर्गावती हों या कित्तूर की रानी चेन्नमा या फिर आम आदमी के संघर्ष का प्रतीक अजीजन बाई, उदा देवी, नीरा आर्या, सुशीला मोहन और कनकलता बरुआ। सबके मन में एक ही ज्वाला थी, देश भक्ति की ज्वाला। इस ज्वाला ने उन्हें देश के लिए सर्वस्य अर्पण करने का साहस दिया। 

 इन सब विभूतियों के बारे में जानने के लिए मैंने अखबारों, पुस्तकों यहाँ तक कि गुगुल को भी खंगाला। मुझे जानकार आश्चर्य हुआ कि जिस स्त्री को हम सुकुमारी, कोमलांगी समझते रहे हैं वह अदम्य साहस, वीरता और बुद्धिमत्ता का ऐसा संगम है जो पुरुषवादी मानसिकता के साथ उसके बुद्धिचातुर्य तथा बुद्धिबल को भी चुनौती देने में सक्षम है। इसके लिए उसे उचित प्रशिक्षण की आवश्यकता है। मुझे यह जानकार खुशी हुई कि राजकन्याओं को प्राचीन काल से ही, शिक्षा के साथ युद्ध कला का भी प्रशिक्षण दिया जाता था तभी आवश्यकता पड़ने पर वे दुर्गा का रूप लेने भी नहीं हिचकती थीं।     

   इस पुस्तक में मैंने सिर्फ स्त्री वीरांगनाओं की जीवनियों को ही सम्मिलित किया है जिससे कि हमारे समाज में स्त्रियों के बारे में फैली भ्रांत धारणा दूर हो सके। इतिहास के इन अनमोल नगीनों से प्रेरणा लेकर वे अपनी बेटियों को भी बल-बुद्धि में इतना ही समर्थ बनायेँ कि आवश्यकता पड़ने पर वे स्वयं की रक्षा करने में समर्थ हो सकें। 

 आजादी के अमृत महोत्सव से प्रेरणा लेते हुए इस संग्रह में मैंने उन 17 वीरांगनाओं की जीवनियों को संग्रहीत किया है जिनके बारे में हमने कम सुना या जाना है। इनमें से किसी का भी त्याग और बलिदान कम नहीं है। इसीलिए मैंने उन्हें नाम के आधार पर नहीं वरन उनके जन्म के आधार सूचीबद्ध किया है।  

 अंत में यही कहना चाहूंगी कि भारत का एक गौरवशाली अतीत रहा है। यह सच है कि कुछ इतिहासकारों ने अपनी विदेशी शिक्षा के प्रभाव कारण हमारे सुनहरे अतीत से छेड़छाड़ ही नहीं की वरन उसे झुठलाने का भी प्रयत्न किया है। विदेशी शिक्षा का ही प्रभाव है कि आज के युवा अपने देश की संस्कृति और परम्पराओं से दूर होते जा रहे हैं। देशप्रेम की जिस अग्नि ने हमें आजादी दिलवाई, उसका आज नितान्त अभाव हो गया है। आज देश को तोड़ने के षड्यंत्र रचे जा रहे हैं। आज लोग अपने स्वार्थ में इतना ड़ूबे हुए हैं कि उन्हें अपना देश नहीं वरन सिर्फ मैं, मेरा परिवार ही नजर आता है। न हम बच्चों को देशभक्ति का पाठ पढ़ा रहे हैं न उन्हें उचित शिक्षा दे पा रहे है। विदेशी भाषा में ज्ञान देकर हम उन्हें निज देश की प्रगति के लिए नहीं वरन विदेश भेजने के लिए तैयार कर रहे हैं। देश को अटूट रखने के लिए व्यक्ति में, समाज में देशभक्ति की भावना को जाग्रत करना आवश्यक है। आज राष्ट्र कवि मैथिली शरण गुप्त की इन पंक्तियों को आत्मसात करने की आवश्यकता है...भरा नहीं जो भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं, वह हृदय नहीं वह पत्थर है, जिसमें स्वदेश से प्यार नहीं।      

 इन सब विरोधाभासों के बीच भी मोहम्मद इकबाल के निम्न शब्द दिल में आस की नन्ही किरण जगा जाते हैं... 

यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रूमा,सब मिट गए जहाँ से।

अब तक मगर है बाक़ी, नाम-ओ-निशाँ हमारा।

कुछ बात है कि हस्ती, मिटती नहीं हमारी।

सदियों रहा है दुश्मन, दौर-ए-ज़माँ हमारा।

Tuesday, September 10, 2024

मोहब्बत की दुकान

 मोहब्बत की दुकान खोलने वाले न जाने राहुल गाँधी देश से और देश के बहुसंख्यकों से इतनी नफरत क्यों करते हैं! 


हिंदू, मुस्लिम, सिखों के बीच सामाजिक समरसता को भंग कर देश में आग लगाने का स्वप्न देखते राहुल गाँधी क्या सचमुच देश का भला करना चाहते हैं?

नहीं... उन्हें किसी तरह सत्ता चाहिए। वह सत्ता के लिए कुछ भी कर सकते हैं।

अगर ऐसा न होता तो दूर देश में वह चीन की प्रशंसा न करते। बी. जे. पी. और आर. एस. एस. की बुराई करते हुए वह भूल जाते हैं। 78 वर्षो में बी. जे. पी. ने तो सिर्फ 15 वर्ष शासन किया जबकि शेष वर्षो में कांग्रेस या उसकी समर्थित सरकारों ने शासन किया तब देश में सुधार क्यों नहीं कर पाये। तब तो वे सिर्फ अपना बैंक बैलेंस बढ़ाने में लगे रहे। अब ज़ब देश आगे बढ़ने का प्रयास कर रहा है तब ये तथा इनका इंडी अलान्स  राह में कीलें ठोकने का प्रयास रहे हैं।

काश! देश के लोग इनकी विभाजनकारी राजनीती को समझें तथा इनकी मोहब्बत की दुकान को बंद कर दें।