Monday, October 16, 2023

मेरी पुस्तक 'याद करें कुर्बानी ' की समीक्षा

 याद करें कुर्बानी : अमर सेनानियों की कुर्बानियों के मह्त्वपूर्ण दस्तावेज : सुधा आदेश। एक चर्चित नाम । मैंने जब लिखना शुरू किया था तब यह नाम देश भर की पत्र-पत्रिकाओं में छाया हुआ था। दशकों तक सुधा आदेश जी की लेखनी से श्रेष्ठ कहानियों का सृजन होता रहा और वे विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित हो लोकप्रिय होती रही हैं। पिछले कुछ वर्षों से सुधा जी ने पत्र-पत्रिकाओं में लेखन कम कर दिया है और अपना ध्यान पुस्तकों के प्रकाशन पर केंद्रित कर रखा है। इसीलिए प्रतिवर्ष उनके कई कहानी संग्रह और उपन्यास सामने आते रहे हैं। पिछले वर्ष उन्होंने बाल साहित्य के क्षेत्र में भी पदार्पण किया था और उनका एक उपन्यास ‘मोबाइल में गांव’ काफी चर्चित हुआ था। हाल ही में उनका इतिहासकार के रूप में एक नया पक्ष सामने आया है। प्रलेक प्रकाशन द्वारा उनकी एक पुस्तक ‘याद करें कुर्बानी’ प्रकाशित की गई है जिसके दो खंडों में देश के आजादी के लिए अपने प्राण न्योछावर करने वाले अमर सेनानियों की गाथाएं संग्रहित की गई है। पहले खंड में 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के 11 सेनानियों की तथा दूसरे खंड में उन्नीसवीं शताब्दी के 11 क्रांतिकारियों की जीवन गाथाएं सम्मिलित है।


 मुझे नहीं याद आता कि इससे पूर्व सुधा आदेश जी ने इतिहास संबंधी कोई लेख भी लिखा हो। एक कहानीकार से इतिहासकार के रूप में उनकी यह यात्रा परकाया प्रवेश जैसी मालूम पड़ती है। खासकर इसलिए कि उन्होंने इस संग्रह में प्रत्येक सेनानी के जीवन के आरंभिक कल से उसके बलिदान तक के घटनाक्रमों के जो तथ्य प्रस्तुत किये हैं वे प्रमाणिकता की कसौटी पर खरे उतरते हैं। निश्चित रूप से इसके लिए उन्होंने गहन शोध किया होगा। पुस्तक के हाथ में लेते ही अंतर्मन में यह प्रश्न कौंधता है कि लेखिका का अचानक यह कायाकल्प कैसे और क्यों हो गया? किंतु पुस्तक की भूमिका की प्रथम पंक्ति में ही इस प्रश्न का उत्तर मिल जाता है? वे कहती हैं ‘कुछ वर्षों पूर्व जब अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर कुछ नवयुवकों ने देश के टुकड़े-टुकड़े करने की बात कही तब मेरा मन आंदोलित हो उठा। बार-बार मन में यही विचार आ रहा था कि आखिर इन नवयुवकों के मन मस्तिष्क में ऐसे भाव, ऐसी मानसिकता क्यों और कैसे उत्पन्न हुई?’’ इन्हीं प्रश्नों के उत्तर खोजने और वर्तमान पीढ़ी को सही मार्ग दिखाने के उद्देश्य से सुधा आदेश जी की लेखनी ने अमर सेनानियों की जीवनगाथाओं को इस पुस्तक में संजोने का बीड़ा उठाया ताकि युवा पीढ़ी उनकी कुर्बानियों को पढ़कर अंधेरे में भटकने के बजाय सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित हो सके।


  संग्रह की पहली जीवनी अंतिम मुगल शासक बहादुर साहब जफर की है जिसमें लेखिका ने उनके जीवन के कई अनछुए प्रसंगों को सामने लाने का प्रयास किया है। वे बताती हैं कि उनके पिता कवि हृदय बहादुर शाह ज़फ़र को दिल्ली की गद्दी सौंपना नहीं चाहते थे लेकिन अंततः उन्होंने शासन की बागडोर संभाली और 82 साल की उम्र में देश के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम का नेतृत्व भी किया। पुस्तक के इस भाग से पता चलता है कि इस अंतिम मुगल शासक की मृत्यु अंग्रेजों की कैद में किन विषम परिस्थितियों में हुई थी और आज उनके वंशज हमारे स्वतंत्र देश में झुग्गी-झोपड़ी में रहने के लिए मजबूर हैं।


 रानी लक्ष्मी बाई की वीरता और बलिदान की गाथा से तो सभी परिचित हैं किंतु उनकी हमशक्ल, महिला शाखा की सेनापति, झलकारी बाई की वीरता के बारे में कम ही लोग जानते हैं। सुधा जी ने अपनी पुस्तक में इन दोनों वीरांगनाओं के बारे में विस्तार से लिखा है। इसी प्रकार वीर सेनानी तांत्या टोपे के बारे में पाठ्यक्रमों में तो बहुत कुछ पढ़ाया जाता है लेकिन उनकी समकालीन तवायफ अजीजन बाई के बलिदान के बारे में लोगों को ज्यादा मालूम नहीं। अजीजनबाई ने तवायफों को एकत्रित कर ‘मस्तानी टोली’ नाम से एक सेना बनाई थी जिसने अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया था। कानपुर और बिठूर की आजादी में तात्या टोपे के साथ-साथ अजीजन बाई की वीरता का भी बहुत बड़ा योगदान था। सुधा जी की लेखनी ने इन दोनों के बारे में भी काफी विस्तार से लिखा है। 


  इसी के साथ-साथ पुस्तक के प्रथम खंड में उन्होंने बेगम हजरत महल, कोतवाल धन सिंह गुर्जर, नाना साहब,ऊदा देवी,मंगल पांडे तथा अवंतीबाई की जीवनी एवं उनके संघर्ष व बलिदान के बारे में काफी विस्तार से चर्चा की है। इससे पाठकों को अनेक ऐसी गाथाओं के बारे में पता चलता है जो इतिहास के पन्नों में खामोश हो कर दफन हो गई हैं।


 पुस्तक के द्वितीय खंड में उन्नीसवीं शताब्दी के 11 स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की जीवन गाथाएँ शमिल की गई हैं। जिनमे रामप्रसाद बिस्मिल, यतीन्द्र नाथ, सरदार भगत सिंह जैसे चर्चित वीरों के नाम शामिल है तो वही सुशीला देवी, प्रीतिलता वाडेकर, कल्पना दत्ता, महावीर सिंह जैसे उन शहीदों की जीवनियां भी शामिल की गई है जिनके बारे में लोगों को कम जानकारी है। सुधा जी ने उनके बलिदानो से आज की पीढ़ी को परिचित करवाने का पुनीत कार्य किया है इसके लिये उन्हें साधुवाद दिया जाना चाहिए।


  सामान्यतः पाठकों को इतिहास रटना पड़ता है किंतु सुधा आदेश मूल रूप से एक कहानीकार हैं अतः उन्होंने इतिहास की घटनाओं को श्रृंखलाबद्ध कर इस अंदाज़ में प्रस्तुत किया है कि पाठक एक बार जब उन्हें पढ़ना शुरू करता है तो उसमें डूबता चला जाता है और किसी चलचित्र की भांति सारी घटनाएं उसके अन्तर्मन में उभरती चली जाती हैं। यही कारण है कि इन अमर सेनानियों की बलिदान की गाथायें उन्हें देश प्रेम के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती है।


  कुल मिलाकर इस पुस्तक का मूल्यांकन इतिहास के एक महत्वपूर्ण दस्तावेज के रूप में किया जाना चाहिए और इसके सृजन के लिए सुधा आदेश जी की जितने भी प्रसंशा की जाए वह कम है। यदि ऐसी पुस्तकें स्कूल के पाठ्यक्रमों में लगाई जा सकें तो उनकी उपयोगिता सार्थक हो सकेगी। मुझे विश्वास है कि सुधा जी की लेखनी से भविष्य में कोई ऐतहासिक उपन्यास अवश्य देखने को मिलेगा। उनमें इतिहास को सूचीबद्ध करने की क्षमता है और उनके तरकश में अभी कई तीर बाकी हैं यह इस पुस्तक के लेखन ने स्पष्ट कर दिया है। मैं उनकी इस पुस्तक की सफलता की मंगलकामना करता हूँ. । इस पुस्तक का प्रकाशन प्रलेक प्रकाशन ने किया है और इसकी कीमत 299 रुपये है।

 -संजीव जायसवाल ‘संजय’

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