Saturday, September 23, 2023

मानसिक दबाव और साहित्यकार

 विपरीत परिस्थितियों में बढ़ते मानसिक दबाव के बीच साहित्यकारों का दायित्व एवं देन...


 आज मानसिक दवाब से कोई भी अछूता नहीं है चाहे वह बाल हो ,किशोर हो ,युवा या वृद्ध । वास्तव में मानसिक दबाव आज जिंदगी का हिस्सा बनता जा रहा है क्योंकि भौतिकता की चकाचौंध की ओर अंधाधुंध भागते इंसान के लक्ष्य बड़े हैं पर  उनको पाने के साधन सीमित या प्रयास कम हैं ।   बड़ा लक्ष्य निर्धारित करना गलत नहीं है .. अगर लक्ष्य ही नहीं तो जीवन कैसा ?  लक्ष्य को हासिल करने के प्रयास में मानसिक दबाव उचित नहीं है क्योंकि यही मानसिक दबाव कभी-कभी अवसाद में परिणित हो जाता है । वैसे भी अत्यधिक मानसिक दबाव  व्यक्ति की लक्ष्य प्राप्ति में भी बाधक  बन जाता है ।


गीता में कहा गया है…


 कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेशु कदाचिन... कर्म पर हमारा अधिकार है पर फल पर नहीं .. .इस आदि मंत्र को अपना मूलमंत्र बनाकर कर्तव्य पथ पर निरंतर चलते रहना ही हर इंसान का प्रयत्न होना चाहिए । 


समाज में फैली कुरीतियों, अनाचारों, दुराचारों पर कलम चलाकर समाज को जाग्रत करने का साहित्यकारों का न केवल दायित्व है, वरन उनकी समाज को देन भी है।  देश, काल और परिस्थितियों के अनुसार रचनाएं लिखकर साहित्यकारों ने अपने दायित्व का सदा निर्वाह किया है तथा कर भी रहे हैं । मानसिक दबाव से उत्पन्न विकारों को दर्शाते हुए, विपरीत परिस्थितियों  के बीच कार्य करने की क्षमता के विकास से संबंधित रचनाएं लिखकर समाज को नकारात्मक से सकारात्मकता की ओर अग्रसर होने के लिए प्रेरित करना, साहित्यकार का कर्तव्य है । आज की यही मांग है जो एक साहित्यकार के लिए चुनोती के रूप में उपस्तिथ  है । हमारा देश तभी उन्नति कर पायेगा जब उसके नागरिक, स्वस्थ तथा सकारात्मक रहें । यह तभी होगा जब उन्हें उच्चकोटि का साहित्य पढ़ने को मिले । उन्हें बताया जाय कि काम के अतिरिक्त कुछ दिन के कुछ घंटे उन्हें स्वयं के लिए तथा अपने परिवार के साथ बिताने चाहिए । आपकी उपलब्धियां नहीं, आपका परिवार ही बुरे वक्त में काम आएगा । भ्रमण तथा व्यायाम भी मानसिक सुदृढ़ी के आवश्यक है । जब तन-मन से खुश रहोगे तब कार्य भी सफलतापूर्वक संपन्न कर पाओगे ।


 मैं यहाँ श्री दुष्यंत कुमार की यह पंक्तियां उद्घृत करना चाहूँगी …


 कौन कहता है सुराख आसमाँ में हो नहीं सकता 

एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो ।


सच अगर लक्ष्य निर्धारित है, व्यक्ति समर्पित हैं, मन में विश्वास है , अपने प्रयासों के प्रति ईमानदार है तो लक्ष्य को हासिल करना मुश्किल नहीं है ।


यही बात सुप्रसिद्ध हस्ताक्षर कविवर रामधारी सिंह दिनकर की कविता में परिलक्षित होती है…


 गौण  अतिशय गौण है तेरे विषय में 

दूसरे क्या बोलते हैं , क्या सोचते हैं 

मुख्य है यह बात पर अपने विषय में 

तू स्वयं क्या सोचता क्या जानता है ।


 उल्टा समझे लोग समझने दे तू उनको 

बहने दे यदि बहती उल्टी ही बयार है 

आज ना तो कल जगत तुझे पहचानेगा ही 

अपने प्रति तू अगर आप ईमानदार है ।


सुप्रसिद्ध शायर इकबाल  का निज पर विश्वास का प्रतीक यह शेर भी व्यक्ति को सकारात्मकता का संदेश देता है ...


खुदी को कर बुलंद इतना कि हर तकदीर से पहले 

खुदा बंदे से खुद पूछे कि बता तेरी रजा क्या है।


मत भूलिए


सफलता-असफलता एक ही 

सिक्के के दो पहलू

जो असफलता से न घबराए

सफलता से न बौराये

वही इतिहास बनाता है ।



सुधा आदेश





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