Sunday, September 19, 2021

उसकी खातिर

 उसकी खातिर-7


एक दिन उसके आफिस से आते ही दीपा ने उसके पास आकर कहा, “भइया आप अपनी बाइक पर मुझे बिठायेंगे।"


        “ हाँ...हाँ क्यों नहीं, चलो।"


       वह दीपा को लेकर बाहर निकलने ही वाला था कि शालिनी आँटी आ गईं । उसे दीपा बिठकर जाते देखकर उन्होंने प्रश्न किया तो उसने कहा,”आँटी, दीपा बाइक पर बैठकर घूमना चाहती है।"


        “उसने कहा और तुम चल दिये । दीपा अंदर जाओ, तम कहीं नहीं जाओगी।" उनकी कड़क आवाज सुनकर दीपा रोती हुई अंदर चली गई।


       शीला आँटी ने दीपा को रोते देखकर कारण पूछा तब शालिनी आँटी ने कहा,"दीदी, बहुत जिद्दी होती जा रही है, सुदीप की बाइक पर बैठने की जिद्द कर रही थी।"


        “तो क्या हुआ ? सुदीप एक चक्कर लगवा देता।"


      “दीदी आप भी… एक अनजान के साथ उसे कैसे जाने देती !!”


         “सुदीप अनजान कहाँ है ? मुझे परख है इंसान की, वह दीपा को अपनी बहन के जैसा ही मानता है।"


          “दीपा उसके लिये बहन जैसी ही है, बहन तो नहीं ।"


       “ मैं तुझसे बहस नहीं करना चाहती, तुझे जो उचित लगे वही कर।"


       उस दिन के पश्चात् न दीपा ने सुदीप से बाइक पर बैठने का इसरार किया और न सुदीप ने अपनी तरफ से कोई प्रयास किया। दरअसल मन के पूर्वाग्रह के कारण शालिनी आँटी का दीपा का उसके साथ उठना बैठना पसंद नहीं था पर शीला आँटी के कारण वह दीपा को कुछ नहीं पातीं थी पर उसने अनुभव किया था कि जब भी दीपा उसके पास आती, शालिनी आँटी की निगाहें उसका पीछा करती रहतीं।


       तीसरे दिन ज्वर की तीव्रता कम हो गई थी अतः डाक्टर के पास जाना ही नहीं पड़ा । शीला आँटी भी लौट आईं थीं। जब उन्हें घटना का पता चला तब उन्होंने कहा,"मैं तो सदा से कहती रही हूँ कि एक से भले दो ।"


       शालिनी आँटी ने इस बार उनकी बात का कोई उत्तर नहीं दिया था पर अब उनका व्यवहार उसके प्रति सहज हो गया था। एक बार पुनः दीपा उसके साथ बैठकर घूमने की इच्छा जाहिर तो उसने दीपा से पूछा,"क्या आपने अपनी ममा से बाइक पर बैठने की इजाजत ली ?”


     “ हाँ भइया, ममा ने ही मुझे आपके साथ घूमने जाने के लिये कहा है।"


       सुदीप ने बरामदे में खड़ी शालिनी आँटी की ओर देखा तो उन्होंने सिर हिलाकर अपनी स्वीकृति दे दी । अब स्थिति यह थी कि दीपा उसके आफिस से आने के समय बाहर ही खड़ी रहती और जब तक वह उसे उसकी इच्छानुसार अपनी बाइक पर बिठाकर कॉलोनी का एक चक्कर नहीं लगवा देता वह उसे गेट के अंदर घुसने ही नहीं देती थी ।


       एक दिन वह दीपा को कॉलोनी का एक चक्कर लगाकर बाइक को पार्क कर ही रहा था कि अपनी मित्र रोशनी अपने ममा-पापा के साथ बाहर जाते देखकर उसने कहा,"सब बच्चे अपने ममा-पापा के साथ बाहर घूमने जाते है। पर मेरे तो पापा ही नहीं हैं।"


         "क्या आपको पापा चाहिये ?”


     "पापा...वह कैसे आयेंगे ? ममा कहतीं हैं वह तो भगवान के पास चले गये हैं।"


        “पर दूसरे पापा तो आ सकते हैं।"


       “दूसरे पापा...पर कैसे ?”


    “ ठीक वैसे ही जैसे मैं तुम्हारा भाई हूँ...क्या तुम मुझे अपना भाई मानती हो ?”


       “ हाँ...।"


       “तो फिर तुम्हारी ममा मेरी ममा तथा मेरे पापा तुम्हारे पापा ।" सुदीप ने दीपा से कहा।


    “सच भइया...क्या ऐसा हो सकता है ?”


   “ हो सकता है...अगर तुम चाहो तो...।"


   “दूसरे पापा भी मुझे पहले वाले पापा की तरह प्यार करेंगे !!” उसकी आँखों में प्रश्न झलक आया था । 


       “अगर तुम उन्हें पापा कहोगी तो वह भी तुम्हें खूब प्यार करेंगे ।"


        “फिर मुझे ढेर सारी चाकलेट और खिलौने मिलेंगे !! रोशनी की तरह पापा भी मुझे घुमाने ले जाया करेंगे।" दीपा की नन्हीं-नन्हीं आँखों में अनेकों टूटे स्वप्न एक बार पुनः पूर्णता की ओर अग्रसर होने लगे थे।


    “अगर तुम्हारी ममा मेरी ममा बनने को तैयार हो जायेँ तब !!"


      “मैं ममा से बात करती हूँ।“ कहते हुये उसके रोकने के बावजूद दीपा तेजी से अंदर चली गई।


       सुदीप ने भावावेश में आकर दीपा से कह तो दिया था पर अब वह मन ही मन पछता रहा था...। मन में डर था कि कहीं शालिनी आँटी फिर बुरा न मान जायें...पर अब कुछ नहीं हो सकता था क्योंकि तीर म्यान से निकल चुका था। उसने मन ही मन सोच लिया था कि अगर शालिनी आँटी बुरा मान गईं तो वह यहाँ से कहीं और शिफ्ट हो जायेगा क्योंकि अगर वह यहाँ रहा तो वह बार-बार दीपा में सुदीपा को ढूँढता रहेगा।


       अभी वह अपने कमरे में पहुँचा भी नहीं था कि दीपा दौड़ी-दौड़ी आई तथा उससे कहा, “भइया, ममा बुला रही हैं।"


       उसके मन में अज्ञात भय समाने लगा था । उसने सोच लिया था कि शालिनी आँटी के कुछ कहने से पूर्व ही वह उनसे क्षमा माँग लेगा ।


       “सॉरी आँटी...मैंने आपके जीवन में अनाधिकृत प्रवेश करने का प्रयत्न किया है। अब मैं आपको और परेशान नहीं करूँगा। दूसरा कमरा मिलते ही शीघ्र ही यहाँ कहीं और शिफ्ट कर जाऊँगा।" उसने कमरे में प्रवेश करते ही सिर झुकाकर कहा।


      “सिर्फ सॉरी कहने से ही काम नहीं चलेगा...सजा तो तुम्हें मिलेगी ही ।"


                “मैं हर सजा भुगतने के लिये तैयार हूँ ।"कहते हुये सुदीप के चेहरे पर मायूसी छा गई ।


    “ मैं तुम्हें और दीपा को भाई-बहन के बंधन में बाँधना चाहती हूँ।"


       “ क्या...?” आँखों में अविश्वास का भाव लिए उसने कहा        


        “ अगर तुम्हारे पापा चाहें तो...।"


        “ अगर आप मेरी ममा बनने को तैयार हैं तो उन्हें तो मैं मना ही लूँगा।"। खुशी के अतिरेक से उसका स्वर अवरुद्ध हो गया ।  वह शीघ्रता से बाहर निकला । 


        वह पापा को फोन करने जा ही रहा था कि शालिनी आँटी ने उसके पास आकर कहा,”इतनी जल्दबाजी अच्छी नहीं है बेटा, पहले मैं अपने दीदी जीजाजी से बातें तो कर लूँ।“


    “ओ.के., थैंक यू सो मच आँटी।“ कहते हुए उसकी आँखों की खुशी शालिनी से छिप नहीं पाई। वह उसके निश्चल हृदय को देखकर, यह सोचकर निश्चिंत थी कि जो बेटा अपने पिता का इतना ध्यान रखता है वह उसके और दीपा के साथ कोई अन्याय नहीं होने देगा।  

 

       जयंत आँटी अंकल को शालिनी आँटी ने जब सारी बातें बताईं तो वह खुशी से फूले न समाये ।अंकल आँटी ने निश्चय किया कि वह शालिनी आँटी का रिश्ता लेकर उसके पापा के पास जायेंगे । उन्होंने फोन करके पापा को अपने आने की सूचना दे दी ।


       कुछ ही दिनों में पापा और शालिनी आँटी एक सादे समारोह में विवाह के बंधन में बंध गये। दीपा की खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं था। तुषार अंकल और अनिल आंटी भी इस विवाह से बेहद प्रसन्न थे। वह जानता था पापा और शालिनी आँटी...ममा ने अपने-अपने बच्चों की खुशी के लिये विवाह बंधन में बंधने का निर्णय लिया है। शालिनी ममा के बारे में तो वह नहीं जानता पर पापा ने सदा अपने मन की है...। आज उन्होंने अगर यह फैसला किया है तो सिर्फ उसकी खातिर, उसके लिये...। वह यह भी जानता था कि बेमन से किये फैसले भी वह बखूबी निभायेंगे क्योंकि वह किसी का दिल नहीं तोड़ सकते। उसे पूरा विश्वास था कि उनकी खातिर लिया फैसला उन चारों के जीवन में एक नई रोशनी लेकर आयेगा। एक बार फिर उसका घर बस गया है। अब वह निश्चिन्त होकर अपना मन अपने काम में एकाग्र कर पायेगा।


सुधा आदेश

समाप्त

 


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