Sunday, May 24, 2020
यह कैसा परिवर्तन
यह कैसा परिवर्तन
पग पड़े अवनि पर
हुआ नयनोन्मीलन
कांप उठा मन
देख निखिल विश्व का
उत्थान पतन ।
सिसकता शैशव
बेबस जवानी
असहाय वृद्धावस्था का
सुन अरण्यरोदन
स्तब्ध हो उठी अवनि
कांप उठा गगन ।
शुभ्र श्वेत
पर्वत शिखर क्यों
हो उठे रक्त रंजित
मानवता का किसने
कर दिया
आज प्रच्छेदन ।
चाँद तारों को
छूने की ललक ने
बांध दिया अंबर
तन तो पहले ही
विवश था
हो गया आज
मन भी विवश
देख चहुँ ओर व्याप्त
दानवता का तांडव नर्तन
निर्मित कर एटम बम
रॉकेट और मिसाइल
हे विनाश के प्रवर्तक
जन-जन को कर
उत्पीड़ित खंडित
निज निर्मित
चक्रव्यूह में फंसकर
मत करना अवक्रन्दन ।
सुख-दुख की छांव तले
तुहिन कणों का सा
वृक्ष पादप पर ठहरा
क्षणभंगुर जीवन
फिर क्यों क्षण प्रतिक्षण
आसुरी शक्तियों में लिप्त
हे मानव , निर्लज्ज मन
हो उठता गर्वोन्मुक्त ।
सुधा आदेश
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