Thursday, February 27, 2020

मन

मन मन सा चंचल, मन सा दुर्गम, मन सा गतिशील, मन सा स्थिर, जग में जड़ या चेतन कोई नहीं है । मन हंसे तो जग हंसे, मन कलपे तो जग कलपे... मन की अबाध गति को आज तक कोई नहीं समझ पाया है ।कभी बड़ी से बड़ी घटना पर मन कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करता तो कभी एक छोटी सी घटना दुख के सागर में डुबो देती है । मन तो मन है फिसला तो हंसी का कारण बन गया अगर सत्कर्म में लिप्त रहा तो जहां को एक नई रोशनी दे गया । सबसे बड़ी बात मन जैसा चाहे वैसा होता रहे तो सब ठीक वरना एक चिंगारी आक्रोश की दुनिया को तहस-नहस करने की क्षमता रखती है । सुख -दुख को महसूस करने वाला मन ही वास्तव में मन कहलाने का अधिकारी है । मन में उमड़ते-घुमड़ते विचारों से भरा पूरा मन कभी अपने निकटस्थ संगी साथियों से अपने मन की बात बताते हुए कहता है प्लीज, किसी से ना कहना ...तो कभी सामाजिक विषमता रूढ़िवादिता तथा ढकोसला से आहत मन परंपराओं को चुनौती देता अपनी चुनी अलग राह पर चलते हुए कहता है आई डोंट केयर .. । समाज में व्याप्त टूटन ,घुटन, संत्रास ,भेदभाव ,अविश्वास तथा विश्वासघात का मन मूक दर्शक बनता जा रहा है । दर्द है मन के संवेदनशून्य होने का, एक दूसरे की भावनाओं को न समझ पाने का ...सामाजिक व्यवस्था के प्रति आक्रोश मन को सदा उद्वेलित करता है । दर्द से ही जीवन की उत्पत्ति होती है इससे भला कौन अपरिचित है पर अपने संसार सागर में खोए हम सभी सब अपनी ही चिता करते हैं दूसरों की नहीं । जिस दिन हम दूसरों के सुख-दुख की चिंता करने लगेंगे, सच मानिये उस दिन हम अपनी नजरों में ही संसार के सबसे सुखी प्राणी बन जायेंगे। मत भूलिये… संसार सागर रंग -बिरंगा प्यारा -प्यारा गुलदस्ता मुख न मोड़ बंदे ,राह आयें चाहे कितने भी मोड़ मेरी तुम्हारी इसकी उसकी नहीं यह दुनिया बिना थके , बिना रुके चला जो ,रच दिया इतिहास नया । सुधा आदेश

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