मैंने लिखी है इबारत,
शब्द ही शब्द है, भाव शून्य है।
इंसा ही जब इंसा का गला काटे,
तब इंसा बुत न बने तो क्या करे...?
काश बुत बन पाती, दिल में दर्द तो न होता
कलाम न रुकती,भाव न चूकते ।
आँखों में नमी है,दिल में बेचेनी है
फिर भी लेखनी चलती नहीं है ।
दोष जमाने का नहीं, हमारा है
असहाय क्यों, टक्कर क्यों नहीं लेते ।
अन्याय का कर प्रतिकार, आगे बढ़ो...
सहना, रोना है कायरों का काम ।
होगा जिस दिन ऐसा,लेखनी न रुकेगी,
विश्वास होगा,आस होगी,चहुं ओर सौहार्द होगा ।
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