Thursday, December 4, 2014

भाव शून्य है

मैंने लिखी है इबारत, शब्द ही शब्द है, भाव शून्य है। इंसा ही जब इंसा का गला काटे, तब इंसा बुत न बने तो क्या करे...? काश बुत बन पाती, दिल में दर्द तो न होता कलाम न रुकती,भाव न चूकते । आँखों में नमी है,दिल में बेचेनी है फिर भी लेखनी चलती नहीं है । दोष जमाने का नहीं, हमारा है असहाय क्यों, टक्कर क्यों नहीं लेते । अन्याय का कर प्रतिकार, आगे बढ़ो... सहना, रोना है कायरों का काम । होगा जिस दिन ऐसा,लेखनी न रुकेगी, विश्वास होगा,आस होगी,चहुं ओर सौहार्द होगा ।

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