वंशवाद और परिवारवाद भारतीय राजनीति का वह विद्रुप चेहरा है जिसे हम भारतीयों ने ही मान्यता दी है शायद व्यक्ति पूजा कुछ इंसानों की रग -रग में इतनी बस चुकी है कि अब राजा -महाराजाओं की जगह ये ही स्थापित हो गये हैं। सोनिया गाँधी को तो राजमाता की पदवी दे ही दी है, राहुल गाँधी का व्यवहार भी राजकुमार जैसा ही रहा है जिसे सिर्फ देश का प्रधानमंत्री ही बनना है। हो सकता है कि किसी ने उन्हें समझाया हो कि अपोजीशन लीडर का पद भी प्रधानमंत्री के बराबर होता है, इसीलिए उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया होगा।
यही स्थिति उत्तर प्रदेश, बिहार, जम्मू कश्मीर इत्यादि की है। दिल्ली में भी आतिषी ने जैसे C.M. की कुर्सी पर बैठने से मना किया, क्या वह व्यक्ति पूजा का उदाहरण नहीं है?
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने एक कदम आगे बढ़ कर अपने पुत्र दयानिधि स्टालिन को राज्य का उप-मुख्यमंत्री ही बना दिया क्योंकि ये जो जनता है, उसे कुछ फर्क नहीं पड़ता।
यह भारतीय राजनीति का दुर्भाग्य है कि अभी भी हमें सच्चे और ईमानदार नेताओं की परख नहीं है न ही उन्हें देश की प्रगति की चिंता है। वे फ्री बिजली, पानी के लिए किसी को वोट दे सकते हैं तभी 7 दशकों बढ़ भी देश जहाँ खड़ा है, वहीं खड़ा रह गया। अब उम्मीद की कुछ किरण दिखाई देने लगी थी लेकिन लोगों को शायद ये भी रस नहीं आ रही। अखिलेश यादव की पार्टी का लोकसभा चुनाव में कुछ अधिक सीट जितना फिर उत्तर प्रदेश को पीछे न धकेल दे…कभी -कभी लगता है कि ये लोग नहीं चाहते कि देश तरक्की करे।
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