Wednesday, March 1, 2023

अन्चीहीं

 

अन्चीहीं


नीलांजना आज बेहद प्रसन्न थी। आज उसकी बेटी दिव्यांका एवं दामाद दीपेश विवाह के पश्चात् पहली बार घर आ रहे हैं। हफ्ते भर के लिये विभिन्न तरह के नाश्ते बनाकर रखने के साथ, आज रात्रि के खाने के लिये उसने दिव्यांका की पसंद की उड़द दाल की कचौड़ी, पनीर बटर मसाला की सब्जी के साथ, दीपेश की पसंद की आलू गोभी की सब्जी, दही बड़ा, वेजीटेबिल पुलाव तथा फ्रूट कस्टर्ड बनाने का भी इंतजाम किया है। दिव्यांका का कमरा भी उसकी  मनपसंद गुलाबी रंग की फूलदार चादर बिछाने के साथ,गुलाबी रंग के ही टॉवल बाथरूम में रख दिये हैं। यहाँ तक कि माली से बगीचे से गुलाबी रंग के गुलाब मँगाकर, उन्हें गुलदस्ते में सजाकर उसके कमरे के खिड़की के पास रखी मेज पर रख आई है।

दीपेश तो दो दिन रहकर चला जायेगा पर दिव्यांका पूरे एक हफ्ते रूकेगी। हनीमून के लिये वे पंद्रह दिन के यूरोप टूर पर गये थे। यद्यपि दिव्यांका जहाँ-जहाँ गई थी उन जगहों की फोटो वह उसके वाट्सअप पर भेजती रही थी किन्तु वह हर जगहों के अनुभवों  को उसके मुख से सुनना तथा उसकी आवाज की खुशी को महसूस कर, यह जानना चाहती है कि वह दीपेश के साथ खुश है या नहीं...। वैसे उसकी दीपेश के साथ दोस्ती दो वर्ष पुरानी है। उन्होंने दो वर्ष डेटिंग कर, एक दूसरे को समझकर, जीवन साथ बिताने का निर्णय किया है किन्तु विवाह के पूर्व स्त्री पुरूष सिर्फ प्रेमी रहते हैं जबकि विवाह के पश्चात् कर्तव्यों के मकड़जाल में फंसे, घर बाहर की जिम्मेदारी संभालते सिर्फ पति पत्नी...। एक माँ के रूप में वह जानना चाहती है कि पति बनने के पश्चात् दीपेश वैसा ही है या बदल गया है। 

अरे ! तुम भी क्या सोचने लगीं...। अभी तो महीना भर नहीं हुआ उनके विवाह को...और तुम सोलहवीं सदी की माँ  की तरह ससुराल से आई बेटी से खोद-खोदकर पूछने की सोच रही हो कि वह अपने इस रिश्ते से खुश है या नहीं...पर मन में विचारों का सैलाब थमने का नाम ही नहीं ले रहा था...    

चार वर्ष पश्चात् यह उसका पहला अवसर होगा जब दिव्यांका उसके पास इतने दिन रहेगी वरना जॉब के कारण उसे छुट्टी ही नहीं मिल पाती थी । वह घर भी आती थी तो वर्क फ़्रोम करते हुए व्यस्त ही रहा करती थी। आजकल आई.टी. वालों की यही तो मुश्किल है कहीं भी रहो टारगेट पूरा करने के लिये दिन रात लगे ही रहना पड़ता है। इस बार उसने विवाह के लिये महीने भर की छुट्टी ली है तथा अपने बॉस शलभ से भी कह दिया कि प्लीज सर, मुझे इस बीच कोई काम मत दीजियेगा। बॉस उसके काम से खुश था अतः उसने उसकी समस्या को समझते हुये, इस बार पूरी तरह से  आफिस के काम से दूर रखने की उसकी इच्छा को मान लिया था ।

दिव्यांका उसकी बेटी अवश्य है पर उसने सदा उससे मित्रवत व्यवहार रखा है। यही कारण था कि जब उसकी दीपेश से जान पहचान हुई तब भी उसने उससे कुछ नहीं छिपाया। उनकी डेटिंग  को एक वर्ष हो गया तब एक दिन उसने दिव्यांका से कहा था,  “बेटा, जब वह तुझे प्रपोज नहीं कर रहा है तब तू ही उससे पूछ ले, कहीं वह तुझे धोखा तो नहीं दे रहा है।” 

“ममा, मैं क्यों पूछूँ ? जब उसे हड़बड़ी नहीं है तो मैं क्यों अपनी बेसब्री दिखाऊँ । वैसे भी कुछ दिन हम एक दूसरे को और समझ लें फिर निर्णय लेंगे।” 

वह दीपेश से मिल चुकी थी । घर परिवार अच्छा था अतः उसे तथा नीरज को भी उनकी दोस्ती पर कोई आपत्ति नहीं थी किन्तु फिर भी माँ का दिल दिव्यांका से कह ही बैठा...

“बेटा, दोस्ती तक तो ठीक है पर उसके आगे मत बढ़ना, तुझे तो पता है हमारा समाज लड़के के अवगुणों पर ध्यान नहीं देता लेकिन अगर लड़की से भूल हो गई तो उसे सारी जिंदगी ताने सुनने को मिलते हैं ।” 

“माँ, हम अपनी जिम्मेदारी समझते हैं । हम ऐसा कुछ नहीं करेंगे जिससे आपकी बदनामी हो।”   

नीलांजना को अपनी बेटी पर पूर्ण विश्वास था। वे रूढ़िवादी नहीं थे। बच्चों को ज्यादा रोकना-टोकना उनके स्वभाव में नहीं था। उसका मानना था कि अगर बच्चों की कोई बात गलत लगे तो प्यार से समझाओ न कि डाँट-डपट कर। ज्यादा डाँटने से बच्चे सुधरते नहीं वरन् बिगड़ते ही हैं। उसने और नीरज ने बच्चों को सदा स्वतंत्र निर्णय के लिये प्रेरित किया। वे जानते थे कि  इससे न केवल बच्चों में आत्मविश्वास की वृद्धि होगी वरन् जीवन के रणसमर में आने वाली चुनौतियों का सामना भी भली प्रकार कर पायेंगे। समय के साथ चलना और स्वयं को बदलना उनके लिये ही नहीं हर इंसान के लिये श्रेयस्कर है तभी बच्चों के साथ तारतम्य बिठाया जा सकता है  किन्तु बच्चों को ऊँच-नीच समझाना माता-पिता को कर्तव्य ही नहीं, दायित्व भी है ।




अपनी इसी सोच के कारण उसने रात का खाना एक साथ बैठकर, बातें करते हुये खाने का नियम बना रखा था जिससे हम कुछ उनकी सुन सकें तथा कुछ अपनी सुना सकें। उनकी डायनिंग टेबिल सिर्फ खाने की टेबिल मात्र नहीं वरन् सभी सदस्यों के मिलन स्थल के साथ संवाद स्थल भी है। जहाँ वे खाना खाने के साथ, अपने दिन भर के अनुभव शेयर किया करते हैं शायद इसीलिये उसके दोनों बच्चे दिव्यांका और दिव्यांशु उससे अपने मन की हर बात कह लेते हैं। लगभग दो वर्ष की डेटिंग के पश्चात्, दीपेश ने जब उसे प्रपोज किया तब सबसे पहले दिव्यांका ने उसे ही बताया था। उन्होंने भी उसकी इच्छा का सम्मान करते हुये दोनों का विवाह धूमधाम से कर दिया था। आज बेटी दामाद के पहली बार घर आने पर वह बेहद खुश थी। 

दिव्यांका के स्वागत की इतनी उत्सुकता देखकर, उसके पुत्र दिव्यांशु ने भी उसे कहा था, “ ममा, आप तो दीदी के स्वागत की तैयारी ऐसे कर रहीं हैं जैसे दीदी-जीजू नहीं कोई वी.वी.आई.पी. आ रहे हैं।”

दिव्यांशु की बात सुनकर वह मुस्कराकर रह गई थी। अब वह उससे क्या कहती कि माँ के लिये पहली बार ससुराल से आती बेटी के लिये कैसी भावनायें होती हैं !! तू नहीं समझ पायेगा एक माँ का दिल...पुत्री से जुड़ाव...दिल पर पत्थर रखकर बेटी को विदा करती है माँ । आज जब वह कुछ दिनों के लिये आ रही है तब मैं उस पर अपनी सारी ममता उड़ेलना चाहती हूँ । वैसे भी दिव्यांशु की सदा से शिकायत रही थी कि मैं दिव्यांका को उससे ज्यादा चाहती हूँ । पता नहीं क्यों और कैसे उसे लगता था कि मैं दिव्यांका को कुछ नहीं कहती हूँ, बस उसे ही जब-तब टोकती-रोकती  रहती हूँ। हाँ, यह अवश्य है लड़की होने के कारण तीज त्यौहारों पर दिव्यांका की शापिंग उसकी तुलना में थोड़ी ज्यादा हो जाया करती थी। उसका यह दोषारोपण तब बंद हुआ जब दिव्यांका जॉब  करने मुंबई  चली गई ।    

अभी वह सोच ही रही थी कि नीरज आफिस के लिये तैयार होकर आ गये। उसने उन्हें नाश्ता परोसते हुये कहा,“दिव्यांका और दीपेश  की शाम चार बजे की फ्लाइट है। मैं उन्हें लेने जाऊँगी।”

“अरे, दिव्यांका ने कहा तो है कि वे कैब से आ जायेंगे । तुम क्यों परेशान होती हो?”  

“उसके कहने से क्या होता है...!! विवाह के पश्चात् वह पहली बार दीपेश के साथ घर आ रही है । हममें से किसी को तो उसे लेने जाना ही चाहिये।”

“तुम जैसा चाहो करो...आज मेरी अर्जेन्ट मीटिंग है, मैं छह बजे से पहले नहीं आ पाऊँगा।”

“हम छह बजे से पहले आ ही जायेंगे, अगर नहीं आ पाये तो घर की चाबी तो है ही आपके पास।”

“वह तो मुझे रखनी ही पड़ती है, पता नहीं तुम्हें कब कहाँ जाना पड़ जाये।” नीरज ने मुस्कराकर उठते हुये कहा।

नीलांजना ने नीरज के आरोप का कोई उत्तर नहीं दिया...वह बेवजह बात नहीं बढ़ाना चाहती थी। बच्चों के बड़े होने तथा नीरज के व्यस्त होने के कारण वह अपनी खुशी अपनी दोस्तों, किटी पार्टी में ढूँढने लगी है...। कभी देर हो ही जाती है।  बस यही बात नीरज के लिये ताना मारने के लिये काफी है किंतु इसके साथ ही वह इस बात को भूल जाते हैं कि उनकी अतिव्यस्तता के कारण, उनकी पत्नी ने घर बाहर की सारी जिम्मेदारी उठा रखी हैं। बच्चों की पढ़ाई, घर के राशन से लेकर बिजली का बिल, हाउस टैक्स, पानी का बिल वही तो भरती है। वह क्रेडिट एवं डेबिट कार्ड उसे थमाकर निश्चिन्त हो गये हैं । इस सबके बावजूद उसके आने में जरा सी देर होने पर उनकी भृकुटियों में बल पड़ना आम बात है। अब तो उसने इन सब बातों पर ध्यान देना ही बंद कर दिया है। सच जो बातें दिल को दुखी करें उनके बारे में क्यों सोचना !! वैसे भी इन छोटी-छोटी बातों के अतिरिक्त नीरज में कोई कमी नहीं है । वह उसे बेहद प्यार करते हैं । सच तो यह है कि थोड़ी नोक-झोंक के साथ प्रेम की चाशनी में डूबा उनका प्यार, खट्टे-मीठे रिश्ते का अहसास कराता हुआ अनमोल है। यही कारण है कि वह नीरज के बिना रहने की कल्पना भी नहीं कर सकती है । 

नीरज के आफिस तथा दिव्यांशु के कालेज जाने के पश्चात् नीलांजना ने अपना मनपसंद जगजीत सिंह की गजल का कैसेट लगा लिया तथा जल्दी-जल्दी रात्रि के खाने की तैयारी करने लगी । गाने सुनते-सुनते काम करने से उसे थकान नहीं होती थी। गाने उसके लिये हीलिंग थेरेपी हैं। देखते ही देखते तीन बज गये। फ्लाइट राइट टाइम थी। उसने जल्दी से घर बंद किया तथा कार निकालकर एअरपोर्ट के लिये चल दी।

नियत समय पर दिव्यांका और दीपेश आ गये...

“हाय ममा...।” कहकर दिव्यांका उसके गले से लग गई वहीं दीपेश ने उसके पैर छूकर अभिवादन किया।



दिव्यांका की आवाज में खुशी तथा चेहरे पर संतुष्टि पाकर उसका मन खिल उठा। बातें करते-करते एक घंटे का सफर कैसे निकल गया पता ही नहीं चला। घर के आहते में गाड़ी पार्क की ही थी कि नीरज और दिव्यांशु बाहर आ गये।  हाय हैलो के पश्चात् दिव्यांशु ने कार की डिक्की से सामान निकाला तथा लेकर चलने लगा। दीपेश ने जब उससे सामान लेना चाहा तो उसने विनम्रता से कहा, “जीजाजी आप मेहमान हैं।  आज मुझे अपनी सेवा को अवसर दें।”  कहकर उसने नीरजा की ओर देखा...मानो पूछ रहा हो ममा, मैं ठीक कर रहा हूँ  न । 

दिव्यांशु ने सामान उनके कमरे में रख दिया । दीपेश तो दिव्यांशु के साथ कमरे में गये किन्तु दिव्यांका उसके साथ ही किचन में लग गई। दिव्यांशु और दीपेश के आते ही गर्मागर्म चाय के साथ उसने खस्ता कचौड़ी और अन्य सामान परोस दिया।

“खस्ता कचौड़ी आपने बनाई हैं!! बहुत ही टेस्टी हैं।”  एक टुकड़ा खाकर दीपेश ने उसकी ओर देखते हुये पूछा।  

“माँ, बहुत अच्छी खस्ता कचौड़ी  बनाती हैं।” दिव्यांका ने कहा।

नीरज यद्यपि दीपेश से पहले भी मिल चुके थे पर आज जितनी बातें पहले नहीं हुई थीं। देश विदेश के साथ और भी अन्य तरह की बातें होतीं रहीं। वे बेहद खुश थे। यही हाल दिव्यांशु का था। जब दिव्यांका अपने यूरोप टूर के बारे में बता रही थी तब दिव्यांशु ने कहा, “दीदी आपने इतनी अच्छी तरह हमें अपने ट्रिप  के बारे में बताया कि मुझे लग रहा है कि आपके साथ मैं भी यूरोप घूमकर आ रहा हूँ।”

जब दिव्यांका ने उसे यूरोप से उसके लिये खरीदा शर्ट और जींस के साथ परफ्यूम दिया तो वह खुशी से उछल ही पड़ा। वह उसके लिये भी एक पर्स तथा अपने पापा के लिये शर्ट लेकर आई थी। खाने का समय हो गया अतः नीलांजना खाना परोसने लिये उठी। उसे उठते देखकर दीपेश और दिव्यांका खाने के लिये मना करने लगे। 

“बेटा, जितना मन हो खा लो। तुम्हारी ममा ने बहुत मन से बनाया है।” उनकी आनाकानी सुनकर नीरज ने कहा।  

खाने में अपनी मनपसंद का खाना देखते ही दोनों के चेहरे खिल उठे। थोड़ी देर पहले खाने के लिये मना करने वाले दीपेश और दिव्यांका ने मन से खाना खाया। दीपेश तो हर चीज की प्रशंसा कर रहा था। उसे ऐसा करते देखकर नीरजा को बहुत अच्छा लग रहा था वरना चाहे जितना ही अच्छा खाना बना लो, पुरूषों के मुख से प्रशंसा के दो शब्द  निकलते ही नहीं हैं। खाते-पीते बातें करते हुये रात के ग्यारह बज गये। अंततः सब आराम करने के लिये उठ गये।

“माँ आपने अकेले इतना सब किया थक गई होंगी।” दिव्यांका ने रात्रि में किचन सिमटवाते हुये उससे कहा।

“बेटा, बच्चों के लिये कुछ भी करने में माँ कभी नहीं थकती । जब तू माँ बनेगी तब मेरी बात को समझ पायेगी।”

“माँ मुझे अभी इस झंझट में नहीं पड़ना...मुझे अभी जिंदगी जी लेने दो।” दिव्यांका ने कहा।   

“ठीक है बेटा... जैसा तुम्हारा मन हो करना पर यह मत भूलना समय पर ही सब अच्छा लगता है...। मातृत्व से ही स्त्री के स्त्रीत्व को पूर्णता मिलती है । खैर इन बातों को छोड़, तू खुश तो है न।” नीलांजना ने उसकी आँखों में देखते हुये कहा।

“हाँ माँ...मैं दीपेश के साथ बहुत खुश हूँ। वह बहुत केयरिंग है...सबसे बड़ी बात यह रही कि  इन दिनों हमें कोई काम का कोई टेंशन नहीं रहा।” 

“हर वक्त काम ही काम...सच आज की पीढ़ी तो जाना ही भूल गई है।” नीलांजना ने गहरी श्वास लेते हुये कहा।  

“ममा, एक बात कहूँ, आप बुरा तो नहीं मानेंगी।” 

“तेरी बात का कभी बुरा माना है जो आज मानूँगी...कह, क्या कहना चाहती है।”

“ममा, हमारा प्रोग्राम थोड़ा चेंज हो गया है। दीपेश की माँ की तबियत ठीक नहीं चल रही है। दीपेश ने मुझसे कुछ कहा तो नहीं है किन्तु मुझे लगता है मुझे भी दीपेश के साथ उसके घर जाना चाहिये। तुम तो जानती ही हो वह अकेली रहतीं हैं। अब उस घर के प्रति मेरी भी जिम्मेदारियाँ हैं। अगर आवश्यकता हुई तो हम उन्हें अपने साथ मुंबई  ले जायेंगे।” 

“क्या...? मैं तो सोच रही थी कि तू पंद्रह दिन मेरे पास रूकेगी...। हम खूब घमेंगे फिरेंगे...ढेरों बातें करेंगे।”  नीलांजना स्थिति की गंभीरता को समझे बिना कह गई।

“चाहती तो मैं भी थी ममा, पर क्या करूँ परिस्थितियाँ ही कुछ ऐसी निर्मित हो गईं हैं...। सॉरी ममा, मैं फिर आपके पास आकर रहूँगी । वैसे भी आप ही तो कहा करती हैं कि विवाह के पश्चात् लड़की के लिये ससुराल फ़र्स्ट होनी चाहिये तथा मायका बाद में।” कहते हुये दिव्यांका ने उसकी ओर देखा।

लेकिन तू अपने जॉब और उनकी सेवा में तारतम्य कैसे बैठा पाएगी...शब्द मुंह से निकालने ही वाले थे कि उसके अन्तर्मन की आवाज ने  उन्हें मुंह में ही रोक लिया...उसका अन्तर्मन कह उठा...तुमने अपनी ननद शिवानी की लड़की नंदिता को नहीं देखा। .उसकी सास को अल्जाइमर की बीमारी हो गई है। वह अपना कुछ काम नहीं कर पातीं हैं अतः उसने उनके लिये चौबीस घंटे की आया एक एजेन्सी से लेकर उनकी देखरेख के लिए रखी हुई है। वह उनका काम ठीक से कर रही है या नहीं, इसके लिये उसने उनके कमरे में सी.सी.टी.वी.लगवाकर उसे अपने मोबाइल से कनेक्ट कर दिया है। जब वह घर में रहती है तब तो वह उनकी निगरानी करती ही है आफिस में सी.सी.टी.वी.द्वारा उनकी निगरानी करती रहती है जिससे उनकी कामवाली अपने काम में कोई कोताही न कर पाये। अरे ! आज के बच्चे जहाँ दिन रात मेहनत करके पैसे कमा रहे हैं वहीं जिंदगी को जीना भी जानते हैं और अपने कर्तव्यों को निभाना भी...। कुढ़ना और दोषारोपण करना उनका स्वभाव नहीं रहा है...अंतर्मन की आवाज सुनकर नीलांजना ने अपने मन के विचारों को झटका था तथा दिल पर पत्थर रखकर, दिव्यांका की मनःस्थिति समझते हुये, उसके  कंधे थपथपाते हुये  कहा,“सच कह रही है तू बेटा...अब वह भी तेरा घर है । जैसा तू ठीक समझे कर...।” 

“कुछ और तो नहीं करना ममा, अब मैं चलूँ, दीपेश मेरा इंतजार कर रहे होंगे।” दिव्यांका ने काम समाप्त होने पर कहा ।

“हाँ जा...अब मैं भी आराम करना चाहती हूँ।” कहते हुये थोड़ी देर पहले उर्जा से ओत-प्रोत नीलांजना के चेहरे पर थकान झलकने लगी थी ।

“गुड नाइट ममा...।” कहते हुये दिव्यांका उसके गले लगी ।

“गुड नाइट बेटा, स्वीट ड्रीम।” बचपन की तरह उसने दिव्यांका के माथे पर चुम्बन अंकित करते हुये कहा ।

दिव्यांका के जाते ही अपने कमरे में जाते हुये नीलांजना सोच रही थी अब उसे भी व्यवहारिक बनना पड़ेगा । दिव्यांका को अपने मोह के जाल से मुक्त करना होगा तभी वह अपने घर परिवार में खुश रह पायेगी । वैसे भी जो मोह व्यक्ति को कर्तव्यविमुक्त कर दे वह मोह नहीं बेड़ियाँ बन जाता है। उसे खुशी थी कि उसके दिये संस्कार उसकी बेटी में जिंदा हैं किन्तु फिर भी आज उसे अपनी बेटी अन्चीन्हीं लग रही थी ।  

  सुधा आदेश  

                

 

  

  

     


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