सबक
‘ कांच का टूटना अच्छा नहीं होता । जरा संभालकर काम किया कर ।’ पुष्पा ने अपनी बहू अंजना को टोकते हुए कहा ।
अंजना चाहकर भी कुछ न कह पाई...पिछले एक हफ्ते से उसकी तबीयत ठीक नहीं चल रही थी, उस पर नौकरानी के न आने के कारण काम भी बढ़ गया था । चाय का कप धोते हुए न जाने कैसे उसके हाथ से फिसल गया और टूट गया...उसने झाडू उठाई तथा फर्श पर पड़े कप के टुकड़े साफ करने लगी ।
‘ तेरी माँ ने कुछ सिखाया है या नहीं, अरे शाम ढले घर में झाड़ू लगाने से लक्ष्मीजी घर में प्रवेश नहीं करतीं । झाड़ू से नहीं कपड़े से इन टुकड़ों को उठा ।’ पुष्पा ने क्रोध भरे स्वर में अंजना से कहा ।
उसी समय भावेश ने घर में प्रवेश किया । माँ को अंजना पर क्रोधित होते देख उसने शांत स्वर में कहा,‘ माँ तुम्हें याद है जब मैं इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा के लिये जा रहा था तो मुझे अचानक छींक आ गई । तुमने मुझे दही, पेड़ा दुबारा खिलाकर उस अपशगुन को शगुन में बदला किन्तु जैसे ही मैं घर के दरवाजे से बाहर निकला एक काली बिल्ली मेरे सामने से निकल गई । तुमने तुरंत मेरा हाथ पकड़ते हुये कहा था कि दस मिनट के अंदर दो-दो अपशगुन...आज मैं तुझे कहीं नहीं जाने दूँगी । तुम्हारी हर बात सुनकर सदा शांत रहने वाले पिताजी ने उस दिन मेरा हाथ पकड़कर खींचते हुये कहा था...’बेटा, चल पहले ही हम लेट हो गये हैं । अगर अपनी माँ की बात सुनता रहा, परीक्षा में लेट हो गया तो उससे बड़ा अपशगुन कोई नहीं होगा । माँ तुम्हारे उस अपशगुन के बावजूद उस वर्ष हायर सेकेन्डरी की परीक्षा में मेरिट लिस्ट में न केवल मेरा नाम आया वरन उसी वर्ष मेरा आई.आई.टी. कानपुर के लिये चयन भी हो गया । इसके बावजूद भी तुम आज तक शगुन अपशगुन, यह न करो वह न करो में लगी हुई हो । जिसे जैसा करना है करने दो... दुनिया बदल रही है तुम भी स्वयं को बदलो, अब यह टोका-टोकी बंद करो ।’ माँ को छोटी सी बात पर बिगड़ते देख सदा शांत रहने वाले भावेश के स्वर में आज न जाने कैसे तीखापन आ गया था।
‘ बहुत आया बीबी की तरफदारी करने वाला...ऐसे ही तोड़ती फोड़ती रही तो जम चुकी तेरी गृहस्थी । तिल-तिल करके जोड़ी जाती है गृहस्थी । एक तुम लोग हो पूरा सेट बिगड़ गया और कुछ फर्क ही नहीं पड़ा । तभी तो आज की पीढ़ी दोनों के कमाने पर भी सदा पैसे की कमी का रोना रोती रहती है । एक हम लोग थे...पाई-पाई जोड़ी तभी तुम्हें आज इस लायक बना पाये हैं।’ बेटे का तीखा स्वर सुनकर भी पुष्पा चुप न सकी तथा अंजना पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए आदतन बोल उठी ।
‘ क्यों राई का पहाड़ बनाने पर तुली हो ? जब देखो जरा-जरा सी बात पर टोका-टोकी...परेशान हो गया हूँ रोज की चिक-चिक सुनकर । एक कप ही तो टूटा है...घर आकर थोड़ा सुकून पाना चाहता हूँ पर यहाँ भी चैन नहीं !! वह प्रयत्न तो कर रही है तुम्हारे साथ निभाने की । तुम यह क्यों नहीं समझती कि तुम मेरी माँ हो तो वह मेरी पत्नी है...।’
‘ तो निभा न पत्नी के प्रति दायित्व...माँ का क्या वह तो कैसे भी रह लेगी !! भले की बात समझाओ तो वह भी बुरी लगने लगती है...न जाने कैसा जमाना आ गया है ?’ पुष्पा ने कहा ।
‘ माँ, मैं तुम्हारी अवमानना नहीं कर रहा हूँ...सिर्फ यह समझाने का प्रयत्न कर रहा हूँ कि अगर अंजना से कभी कोई गलती हो भी जाती है तो उसे ताना मारकर समझाने की बजाय प्यार से भी तो समझाया जा सकता है...।’ भावेश ने स्वर में नर्मी लाते हुये कहा ।
‘ अब तो मेरी हर बात तुम लोगों को बुरी लगती है...। इसके कदम रखते ही तू इतना बदल जायेगा, मैं सोच भी नहीं सकती थी...। अब तो तेरे लिये सब कुछ वही है, वह सही, मैं गलत...।’ क्रोध से बिफरते हुए वह बोली ।
‘ मैं नहीं जानता क्या सही है और क्या गलत ? मैं घर में सुख शांति चाहता हूँ ।’ इस बार भावेश के स्वर में फिर तख्लली आ गई ।
‘ इसका मतलब मैं ही बेवजह लड़ाई करती हूँ...?’ पुष्पा ने क्रोधित स्वर में कहा ।
अंजना ने बीच बचाव करने का प्रयत्न किया तो वह बिफरते हुई बोली,‘ पहले तो स्वयं आग लगाती है फिर अच्छी बनने के लिये पानी डालने आ जाती है...हट, मेरे सामने से, तेरी जैसी मैंने खूब देखी हैं...पहले मेरे बेटे को फँसा लिया, अब उसे मुझसे दूर करने पर तुली है...।’
माँ की जली कटी सुनकर अंजना की आँखों में आँसू भर आए और वह अंदर चली गई...पर भावेश चुप न रह पाया । बहुत दिनों से माँ का अंजना पर छोटी-छोटी बात क्रोधित होना तथा चिल्लाना, यह न करो वह न करो की बंदिशों में बाँधना उससे सहन नहीं हो रहा था और आज कप टूटने पर इतना बखेड़ा… उसने बीच बचाव करते हुए माँ को समझाना चाहा तो बात संभलने की बजाये बिगड़ती ही चली गई । उसने सोचा कि जब बात इतनी बढ़ ही गई है तो आज निपटारा कर ही लिया जाये कम से कम रोज-रोज की चिक-चिक से तो छुट्टी मिलेगी अतः वह भी तेजी से बोला...
‘ तुमसे तुम्हारा बेटा दूर उसने नहीं वरन् तुम्हारी रोज की टोका-टोकी ने किया है । तुम समझती नहीं या समझना नहीं चाहती कि वह अब तुम्हारी बहू के साथ इस घर की सदस्य भी है । जब तुम उससे ठीक से बात करोगी तभी वह तुम्हारा सम्मान कर पायेगी ।’
‘ हाँ, हाँ मैं ही बुरी हूँ...। कितना कृतघ्न हो गया है तू...? तेरे लिये मैंने क्या-क्या नहीं किया...!! सब भूल गया । उस कल की छोकरी के लिये आज तू मेरा अपमान करने से भी नहीं चूक रहा है । इससे तो पैदा ही न हुआ होता तो कम कम से यह दुर्दिन तो नहीं देखना पड़ता...। अच्छा हुआ जो तेरे पिताजी यह अपमान सहने से पहले ही चले गये । हे ईश्वर ! तू मुझे पता नहीं क्या-क्या दिखायेगा । ’ क्रोध के साथ उनकी आँखों में आँसू भी आ गये थे । आज से पहले भावेश ने उनसे इस तरह की बात नहीं की थी ।
‘ उसी अहसान का बदला तो चुकाने की कोशिश कर रहा हूँ पर आखिर कब तक मुझे परीक्षा देनी होगी...? कब तक वक्त वेवक्त ताने सुनने पड़ेंगे...?’ माँ के इसी तरह के नित कड़ुवे वचन सुनकर भावेश भी स्वयं पर नियंत्रण नहीं रख पाया तथा उसी तीक्ष्णता से उत्तर दिया और अंदर चला गया ।
क्रोध से उबल रही पुष्पा ने बेटे बहू से तिरस्कार पाकर स्वयं को पूजा घर में बंद कर लिया । यही उनका ब्रह्मास्त्र था...। अंजना ने चाय के लिये आवाज दी पर उन्होंने दरवाजा नहीं खोला । खाने के लिये आवाज दी फिर भी वह नहीं पसीजीं । पसीजती भी कैसे...? इस बार बहू ही आकर पूछ रही थी । बेटा एक बार भी नहीं आया । आज से पहले जब-जब भी उसमें और बहू में तकरार हुई है वह उसे मनाकर उसके क्रोध को शांत कर दिया करता था तथा अंजना से भी ‘ सारी’ बुलवा दिया करता था पर आज बात कुछ ज्यादा ही बढ़ गई थी । सदा शांत रहने वाले पुत्र के मुँह से निकले शब्द अब भी उसके मन को मथ रहे थे । साथ ही उसका उनसे खाने के लिये भी न पूछना, उन्हें दंशित करने लगा, वह कुढ़कर रह गईं ।
रात में जब भूख बरदाश्त नहीं हुई तो धीरे से दरवाजा खोलकर वह बाहर आईं । किचन में कुछ न पाकर बड़बड़ाई कि किसी को भी मेरी चिंता नहीं है । दोनों खाकर मजे से सो गये हैं । मैं जीऊँ या मरूँ , इससे किसी को मतलब ही नहीं रहा है । हे भगवान, न जाने कैसा जमाना आ गया है !!
फ्रिज खोला तो उसमें सब्जी के साथ ही रोटी का डिब्बा रखा देखकर चैन की सांस ली । सब्जी की मात्रा तथा डिब्बे में रोटियों की संख्या देखकर उन्हें लगा कि किसी ने भी खाना नहीं खाया है । फिर मन में आया कुछ और खा लिया होगा । जब मेरे लिये इनके दिल में इतनी कड़ुवाहट है तो वे खाना क्यों छोड़ेंगे...? अशांत मन से सब्जी गर्म की और खाना खाकर सो गई । वह सुबह उठीं, पूरे कमरे को रोशनी से नहाया देखकर चौंक गईं । सुबह के आठ बज गये हैं...। इतनी देर तक तो वह कभी भी नहीं सोई । नित्य कृत्य से निवृत होकर बाहर आई तो देखा बहू किचन में थी तथा बेटा घर से आफिस के लिये निकल रहा है । उन्हें देखकर भी उसने उनसे कुछ नहीं पूछा न ही कहा, ‘ माँ मैं आता हूँ ।‘ उसे चुपचाप आफिस जाते देखकर मन में कुछ दरक गया...जिस बेटे के लिये इतना कुछ किया वह उनसे ऐसे मुँह मोड़ लेगा कभी सोचा ही नहीं था ।
पति सिद्धार्थ के परमपिता में विलीन होने के पश्चात् उन्होंने अकेले ही पुत्र भावेश और पुत्री दीप्ति को हर कठिनाइयों से बचाते हुए पाला है । दीप्ति अपने घर संसार में इतनी डूब गई है कि उसे उनकी सुध ही नहीं है और आज भावेश ने अपनी पत्नी के लिये उसे खरी खोटी सुना दी । आज जब आराम करने का समय आया तो दोनों के ऐसे तेवर...अगर कुछ कह दिया तो दोनों के मुँह फूल गये...। यह भी नहीं सोचा कि माँ के दिल पर क्या बीत रही होगी ?
उसे देखकर अंजना ने उसके सामने चाय रखी तो वह भड़क कर बोलीं, ‘ बेटे को तो मुझसे दूर कर ही दिया...अब और भी कुछ करना बाकी है तो वह भी कर दे...। पता नहीं उसे क्या पट्टी पढ़ा दी है कि आज वह मुझसे बिना बात किये आफिस चला गया ।’
इस बार अंजना भी चुप न रह सकी तथा बोली,‘ रात में चुपचाप उठकर आपने खाना खा लिया...। बहू की तो दूर पर क्या आप यह सोच भी पाईं कि बेटे ने भी रात में कुछ खाया है या नहीं । इस समय भी वह बिना खाये आफिस चले गये हैं...यहाँ तक कि टिफिन भी नहीं ले गये हैं ।’
‘ तेरा पति है, तू जाने उसने क्यों नही खाया...?’ चाय पीते हुये निर्लिप्त स्वर में उन्होंने कहा ।
‘ आप भी तो उनकी माँ हैं...। क्या आप का फर्ज नहीं है कि एक बार अपनी पेट पूजा से पहले अपने बेटे से भी पूछ लें कि उसने कुछ खाया है या नहीं...?’ सदा चुप रहने वाली अंजना भी आज चुप न रह पाई । वह भी आज भावेश के बिना खाये निकल जाने के कारण बेहद दुखी थी ।
‘ बहुत बोलने लगी है तू...। कर्म तो मेरे ही फूटे थे...वरना एक से एक लड़कियाँ आ रही थीं मेरे भावेश के लिये...। दहेज भी खूब मिलता, पर तूने उस पर न जाने कैसा जादू कर दिया कि वह तुझे ब्याह लाया...। एक तो गरीब घर की और ऊपर से बेशऊर...न बात करने का तरीका और न रहने का । मैं तो यह सोचकर तुझे अपनाने के लिये तैयार हो गई थी कि गरीब है तो क्या हुआ मेरे भावेश की पसंद है और शायद मेरे इस अहसान के बदले तू मुझसे दबकर रहेगी तथा मेरी हर बात मानेगी । पर बात माननी तो दूर, तू तो मेरे भावेश को ही मेरे विरूद्ध भड़काती रहती है वरना वह पहले ऐसा नहीं था...।’
‘ आखिर कब तक आप मुझे ताने देती रहेंगी...? गरीब हूँ तो क्या मैं इंसान नहीं हूँ ...? क्या मेरा कोई आत्मसम्मान नहीं है ? गरीब होने के बावजूद मेरे माता-पिता ने मुझे पढ़ाया, मुझे आई.आईटियन बनाया । भावेश ने मेरी योग्यता के कारण मुझसे विवाह किया था...। इस सबके बावजूद भी दिन रात ताने...आखिर कितना सहूँ ।’ अंजली ने रोते हुए कहा तथा अपने कमरे में चली गई ।
‘ जा...जा...इन टसुओं से मैं पिघलने वाली नहीं...। इन टसुओं के सिवा लाई ही क्या है...? मेरे सोने से घर को नर्क बनाकर रख दिया है ।’ पुष्पा ने जोर से चिल्लाते हुए कहा ।
सास के स्वर अंजना के मनमस्तिष्क में शीशे की तरह चुभ-चुभकर उसे लहूलुहान कर रहे थे । विवाह के पश्चात् लड़की का जीवन बदल जाता है...यह तो उसने सुना था पर रिश्ते निभाने के लिये उसे अपमान भी सहना होगा यह उसने नहीं सोचा था । उसने अपनी सास की हर बात मानने तथा उनकी इच्छानुसार काम करने की भरपूर कोशिश की पर उसकी हर कोशिश नाकामयाब रही । उसकी हर बात में कमी निकालकर उसे बेशऊर सिद्ध करना उसकी सास को सुकून पहुँचता था । घर की सजावट में थोड़ा भी फेर बदल करने का प्रयत्न करती तो तुरंत कह देतीं कि यह मेरा ड्रीम हाउस है जब तक मैं हूँ, कोई फेरबदल नहीं होगा । आखिर उसने घर की साजसज्ज्जा के बारे में सोचना ही छोड़ दिया । उसके हिस्से में अधिकार की बजाय कर्तव्य ही आये । कर्तव्य करते-करते अगर कहीं कुछ भूल चूक हो जाती तो ऐसे ताने देकर लहूलुहान कर दिया जाता कि उसे लगता ही नहीं था कि वह इस घर की बहू है । छुटपन में माँ के गुजर जाने के कारण उसे बचपन से माँ का प्यार नहीं मिला था । सोचा था सास के रूप में माँ को प्राप्त कर वह सारी कमी पूरी कर लेगी पर माँ तो ऐसे व्यवहार करती जैसे वह उनकी बहू नहीं नौकरानी हो ।
कल तो हद ही कर दी । जब वह उनको खाने के लिये कहने गई तब तो उन्होंने खाना खाने से मना कर दिया किन्तु भूख बर्दाशत न होने पर उन्होंने रात में चुपचाप उठकर खाना खाया और सो गईं जबकि माँ के न खाने के कारण भावेश ने भूख नहीं है, कहकर खाने से मनाकर दिया था । वह अकेले कैसे खाती !! उसे बना बनाया खाना उठाकर फ्रिज में रखना पड़ा तथा आज सुबह भी भावेश नाश्ता बनने के बावजूद बिना कुछ खाये आफिस चले गये । वह समझ नहीं पा रही थी कि भावेश का गुस्सा उस पर है या माँ पर...। आखिर कैसे वह सामंजस्य स्थापित करे...? वही कितना झुके...? सब कुछ भूलकर वह सुबह की चाय देने गई तो फिर वैसी ही जली कटी...आँखों से आँसुओं की अविरल धारा बह रही थी...। मन इतना खराब था कि आज उसका ऑफिस जाने का भी मन नहीं हुआ । कमरे में आकर उसने छुट्टी का मेल कर दिया ।
पुष्पा ने अंजना को कमरे में जाते देखा तो सोचा जाती है तो जाये, मुझे क्या ? मैं किसी को मनाने नहीं जाऊँगी ...। अपने आप अक्ल ठिकाने आ जायेगी । तेवर तो देखो इस लड़की के...पता नहीं अपने को क्या समझती है...?
पूरी जिंदगी तो उसने बच्चों की परवरिश में लगा दी....दीप्ति के विवाह के बाद सोचा था कि बेटे का विवाह अपनी इच्छानुसार करूँगी । उसके विवाह में मोटा दहेज लेकर अपनी उन सारी इच्छाओं को पूरा करूँगी जो पारिवारिक दायित्वों के चलते पूरा नहीं कर पाई पर भावेश ने उसके सारे अरमानों पर पानी फेर दिया...। एक दिन इसे सामने लाकर खड़ा कर दिया तथा कहा,‘ माँ आशीर्वाद दो...।’
वह भावेश के बर्ताव से अवाक थीं । वह सोच या समझ पातीं उससे पहले ही भावेश और अंजना उसके पैरों पर झुक गये । एकलौता बेटा है, विद्रोह करके जाती भी तो कहाँ जातीं...सोचकर उन्होंने उन्हें आशीर्वाद दे दिया । अग्नि में घी का काम किया उनकी पड़ोसन सीमा और मीनाक्षी के शब्दों ने...जो खबर मिलते ही उसे बधाई देने पहुँची तथा उससे पूछा,‘ पुष्पा बहन, बहू है तो सुंदर, सुना है लव मैरिज है...। अकेली ही आई है या साथ में कुछ लाई भी है...।’
अब उनसे क्या कहती...मन मसोसकर रह गई थी । पुत्र से तो वह कुछ नहीं कह पाई लेकिन जब तब मन का आक्रोश अंजना पर निकलने लगा । कल जब वह अंजना को टोक रही थी तभी भावेश आ गया और वह उनसे उलझ पड़ा । उसे इस बात की कतई उम्मीद नहीं थी कि वह बहू का पक्ष लेगा । इससे पहले भी वह अंजना को यह न करो, वह न करो की हिदायतों के साथ उसे छोटी-छोटी बातों पर टोकती आई थी तथा अक्सर भावेश से उसकी शिकायत भी कर दिया करती थी पर हर बार वह अंजना को ही डाँटकर उनका पक्ष मजबूत करता रहा था...पर आज तो हद ही हो गई...। उसने न केवल अंजना का पक्ष लिया वरन् उसके रूठने पर भी उसे मनाने नहीं आया...पर मैं भी किसी से कम नहीं, इनसे दबूँगी नहीं, वरना ये मेरा रहना ही दूभर कर देंगे, सोचकर उसने स्वयं को समझाया तथा अंजना के द्वारा बनाई चाय पीकर नहाने चली गई । नहाकर पूजाकर जब बाहर आईं तो देखा अंजना कमरे से बाहर नहीं आई है । वे किचन में गई तो देखा भावेश का लंच पैक है । खोलकर देखा तो उसमें सब्जी परांठा था । कुछ बनाने की अपेक्षा उन्होंने उसे ही खाना श्रेयस्कर समझा तथा नित्य की तरह टी.वी. पर अपना मनपसंद सीरियल देखने लगीं ।
दोपहर का एक बज गया । अंजना को कमरे से बाहर न आते देखकर उन्होंने टोस्टर में ब्रेड सेकी तथा एक कप चाय बनाकर खाने बैठ गई । उन्होंने न ही अंजना को आवाज दी और न ही उसके कमरे में गई...चार बजे चाय की तलब लगने पर स्वयं ही चाय भी बनाकर पी ली...पर अब तक उनका क्रोध चरम सीमा तक पहुँच चुका था । अब वह भावेश के आने का इंतजार करने लगीं...जैसे ही वह आया । मन का आक्रोश निकलने लगा...
‘ अब चुप भी करो माँ, क्या मैं तुम्हें नहीं जानता...? एक वक्त खाना बनाकर नहीं खिला पाई तो इतना हो क्रोध क्यों...? हो सकता है उसकी तबियत खराब हो...!! ’
‘ हाँ...हाँ अब तो माँ में ही तुझे कमी नजर आयेगी...वही तेरे लिये सब कुछ हो गई है । पल्लू से जो बाँध लिया है उसने तुझे...।’
‘ तुम सास बहू के चक्कर में मेरा जीना दुश्वार हुआ जा रहा है, तुम्हें जैसे रहना हो रहो...मैं ही घर छोड़कर जा रहा हूँ...।’
‘ तू क्यों जायेगा...जाना है तो मैं जाऊँगी...।’ सदा कि तरह उन्होने कहा ।
उनका वाक्य पूरा होने से पूर्व ही भावेश दनदनाता हुआ बाहर चला गया । वह जब तक बाहर आई तब तक वह जा चुका था ।
भावेश को पैदल घर से जाते देखकर उसने सोचा, ऐसे ही किसी मित्र के घर चला गया होगा । क्रोध शांत होते ही आ जायेगा । सब मुझ पर ही गुस्सा निकालो...बहू के ऐसे तेवर...सुबह से पानी के लिये भी नहीं पूछा और शिकायत की तो बेटा भी घर छोड़ने की धमकी देने लगा । हे भगवान, अब तू मुझे उठा ही ले...उन्होने सदा की तरह ऊपर की ओर देखते हुये हाथ जोड़कर कहा ।
आठ बजे पुष्पा बहू के कमरे की तरफ गई, एक बार सोचा आवाज लगाये पर स्वयं की अकड़ ने उसे रोक लिया । अपने लिये दो रोटी बनाई और पिछले दिन की बनी सब्जी से खा लीं तथा निश्चिन्त भाव से टी.वी. देखने लगी । नौ बजे, यहाँ तक कि दस बज गये, न बेटा लौटा और न ही बहू कमरे से बाहर निकली । अब उसे चिंता होने लगी...। एकाएक उसे लगा, बहू ठीक ही कह रही थी कैसी माँ हैं आप कि यह जाने बिना कि बेटे , बहू ने खाया है या नहीं, आपने खा कैसे लिया...? बहू की बात तो छोड़ दें पर उसके मन में रात में बिना खाये सोये तथा सुबह भूखा ही आफिस गये पुत्र के प्रति जरा सी भी संवेदना नहीं जगी । उससे कुछ खाने के लिये पूछने की बजाय उसके आते ही वह शिकायतों का पुलिंदा लेकर बैठ गई...। यह कैसी आत्मघाती प्रवृत्ति बनती जा रही है उसकी...?
अब उन्हें पुत्र की चिंता हो रही थी वहीं बहू पर भी गुस्सा आ रहा था जो सुबह से अपने कमरे में बंद थी । उसकी नहीं, कम से कम अपने पति की तो चिंता होनी चाहिए उसे...भावेश के मोबाइल पर ट्राई किया तो स्विच आफ बता रहा था...। भावेश के मित्र नरेश को फोन किया तो उसने कहा, ‘ माँजी, भावेश मेरे पास तो नहीं आया...दीपक से पूछकर देखिये शायद उसे पता हो ।’
दीपक के साथ पुष्पा ने भावेश के कुछ अन्य मित्रों को फोन किया वहाँ से नकारात्मक उत्तर पाकर उन्हें को कुछ नहीं सूझ रहा था । अब बहू के पास जाने के सिवाय कोई चारा ही नहीं था । उसके कमरे में कदम रखा तो बिजली बंद थी...बिजली ऑन करते हुए कुछ कठोर शब्द मुँह से निकलने वाले थे कि देखा वह चादर ओढ़े लेटी है । शरीर बुरी तरह कंपकपा जा रहा है तथा मुँह से भी कुछ अस्पष्ट शब्द निकल रहे हैं...वह घबरा गई...बहू की यह हालत और बेटे का कुछ पता नहीं...पास जाकर छूआ तो शरीर तप रहा था...। पहली बार आत्मग्लानि से भर उठा उनका मन...।
कोई उपाय न देखकर अंजना की स्थिति बताते हुये दुबारा नरेश को फोन किया तो उसने कहा, ‘ आंटी, इतनी रात कोई डाक्टर आयेगा या नहीं, फिर भी मैं कोशिश करता हूँ...।’
एक बार बेटी दीप्ति ने भी अंजना के प्रति उसके रूखे व्यवहार को देखकर कहा था,‘ माँ, रस्सी को इतना भी न ऐंठो कि वह टूट जाये...फिर यह मत भूलो कि तुम्हारे बुढ़ापे के यही सहारे हैं । आज तुम जैसा बोओगी वैसा ही पाओगी...।’
‘ तू अभी बच्ची है तभी ऐसा कह रही है । अगर अभी मैंने इन्हें टाइट करके नहीं रखा तो बाद में ये मेरे सिर पर चढ़कर नाचेंगे...।’ दीप्ति के उसे समझाने पर उसने उत्तर दिया था ।
‘ वह सब पुरानी बातें हैं...सच्चाई तो यह है कि हर संबंध प्यार दो और प्यार लो, के सिद्धांत पर टिका है, डराकर या दहशत पैदाकर आप कुछ समय के लिये भले ही उन्हें अपना गुलाम बना लो पर कभी न कभी तो उनके क्रोध का गुब्बारा फूटेगा तब उन्हें दोष मत देना ।’
‘ अच्छा, अब बंद भी कर अपना प्रवचन...।’
उस समय उन्होंने दीप्ति को चुप करा दिया था पर आज अंजना की हालत देखकर तथा पुत्र का कोई अता पता न पाकर इस समय उसे दीप्ति का कहा एक एक शब्द सही लग रहा था...वरना सदा शांत रहने वाले तथा उसकी हर आज्ञा का अक्षरशः पालन करने वाले बेटे बहू मे इतना अंतर क्यों आया...? कहीं उसकी बेवजह की नुक्ताचीनी के कारण ही तो नहीं ।
आज पुष्पा इस सबकी वजह स्वयं को समझने लगी थी...न ही वह इतनी कठोर या रूक्ष होती न ही भावेश घर छोड़कर जाता और न ही बहू की यह हालत होती...। आखिर किसी बात को सहने की भी एक सीमा होती है जब अति हो जाती है तो एक संवेदनशील इंसान ऐसे ही मानसिक संतुलन खो बैठता है...। उसे यह बात समझ में तो आई पर कुछ देर से...।
लगभग आधे घंटे में नरेश डाक्टर को लेकर आया...आते ही उसने अंजना को इंजेक्शन दिया तथा समय से दवा खिलाने का निर्देश देते हुए ब्लड टेस्ट करवाने के लिये कहा ।
भावेश का कहीं कोई पता नहीं था...इधर अंजना की तबियत ठीक होने का नाम नहीं ले रही थी...। पुष्पा जिसे अंजना के नाम से ही चिढ़ थी, अचानक उसके प्रति सहृदय होने लगीं । अंजना जब भी भावेश के लिये पूछती वह कह देती वह आफिस के काम से बाहर गया है...काम होते ही आ जायेगा । उसका मोबाइल अब भी स्विच आफ बता रहा था । अभी पुष्पा कशमकश से गुजर रही थी कि दीप्ति का फोन आया । न चाहते हुये भी उसे दीप्ति को बताना पड़ा ।
दीप्ति ने सारी बातें सुनकर सिर्फ इतना कहा, ‘ माँ मेरी सासूमाँ की तबियत ठीक नहीं है वरना मैं आ जाती । जब तक भइया नहीं मिल जाते, तुम्हें संयम से काम लेना होगा, स्वयं के साथ भाभी को भी संभालना होगा ।’
जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा था झूठ बोलने के बावजूद अंजना सब समझ गई थी...। नरेश तथा उसके अन्य मित्र भी भावेश के बारे में कुछ नहीं बता पा रहे थे । अंजना पर इस बात का ऐसा असर हुआ कि उसने खाना पीना छोड़ दिया । यहाँ तक कि दवा खाने से भी उसने मना कर दिया । उसकी ऐसी हालत देखकर एक दिन वह उससे बोली,‘ बेटी, मैं तेरी दोषी हूँ , मुझसे गलती हुई है , इसका प्रतिकार भी मुझे ही करना होगा । मुझे पूरा विश्वास है, भावेश एक दिन अवश्य आयेगा । वह तुझसे बहुत प्यार करता है आखिर कब तक वह तुझसे दूर रह पायेगा पर बेटा उसके लिये तुझे जीना होगा । यूँ खाना पीना छोड़ने से तो किसी समस्या का हल नहीं निकलेगा । कुछ दिन और देख लेते हैं वरना फिर पुलिस में कमप्लेंट करवाने के साथ पेपर में भी इश्तहार देगे...।’
उसकी बात मानकर अंजना ने थोड़ा खाने की कोशिश की पर उसे उल्टी हो गई । ऐसा एक बार नहीं कई बार होने पर पुष्पा ने उसे डाक्टर को दिखाने का निर्णय लिया तथा वह अंजना को लेकर डाक्टर को दिखाने उनके नर्सिग होम गई...।
‘ डाक्टर साहब, मेरी बहू ठीक तो है...।’ पुष्पा ने डाक्टर के चैक करने के पश्चात् पूछा ।
‘ हाँ...हाँ बिल्कुल ठीक है...मिठाई खिलाइये...आप दादी बनने वाली हैं...।’
‘ क्या...?’
‘ बिल्कुल सच अम्मा...आप दादी बनने वाली हैं...।’
डाक्टर को दिखाकर वह कमरे से निकली ही थीं कि एक नर्स दौड़ती हुई आई तथा बगल के केबिन में घुसते हुए बोली, ‘ डाक्टर साहब, उस पेशेन्ट को होश आ गया है...।’
‘ सच, तुम चलो, मैं आता हूँ...।’
‘ क्या हुआ डाक्टर उस पेशेंट को...?’ नर्स की बात सुनकर अंजना से रहा नहीं गया, उसने डाक्टर के केबिन में घुसते हुए पूछा ।
‘ आप लोग कौन हैं तथा बिना इजाजत मेरे केबिन में कैसे घुस आये...?’ डाक्टर ने उसे ऊपर से नीचे तक निहारते हुए रूखे स्वर में कहा ।
‘ डाक्टर साहब, मेरे पति लगभग पंद्रह दिन से लापता हैं...इसलिये मैं इस पेशेन्ट के बारे में जानना चाहती हूँ ।’ अंजना ने डाक्टर की डाँट की परवाह किये बिना कहा ।
‘ पंद्रह दिन से लापता...लगभग इतने दिन पूर्व ही इस व्यक्ति को बुरी तरह जख्मी हालत में यहाँ लाया गया था । कोई पहचान का जरिया न होने पर हम उनके घर वालों को खबर नहीं कर पाये हैं । वह तो उस सज्जन की सज्जनता कहिए जो इसे इतनी जख्मी हालत में उठाकर लाये । वही इसके इलाज का खर्च भी उठा रहे हैं...।’ अचानक डाक्टर के स्वर में नर्मी आ गई ।
‘ क्या हम उससे मिल सकते है...?’ पुष्पा और अंजना ने एक साथ कहा ।
‘ हाँ...हाँ क्यों नहीं...।’
वे दोनों डाक्टर के पीछे-पीछे गई...। भावेश को पाकर उनकी खुशी का ठिकाना न रहा पर भावेश ने उन्हें देखकर मुँह फेर लिया ।
‘ क्या आप इन्हें जानती हैं...?’
‘ यह मेरा बेटा भावेश है...हम पिछले पंद्रह दिन से इसे ढूँढ रहे हैं...।’ माँजी ने खुशी-खुशी डाक्टर से कहा ।
‘ चलो अच्छा हुआ...वरना हम इनकी आइडेंन्टी को लेकर परेशान हो रहे थे...।’ डॉक्टर ने कहा तथा समीप खड़ी सिस्टर को कुछ निर्देश देकर चला गया ।
‘ आज दो-दो खुशियाँ आपके दामन में समाई हैं माँजी...जमकर पार्टी दीजिए और हाँ मुझे बुलाना नहीं भूलियेगा...।’ पीछे से आवाज आई ।
पुष्पा ने पीछे मुड़कर देखा तो वही नर्स खड़ी थी जिसने पेशेंन्ट के होश में आने की सूचना दी थी...
‘ आप अपना दवा का परचा वही भूल आई थीं । डाक्टर ने आवाज लगाई पर आपने सुना नहीं...लीजिए दवा का पर्चा...और हाँ पार्टी में बुलाने से नहीं भूलियेगा ।’ नर्स ने दवा का पुर्जा उसे पकड़ाते हुए पुनः कहा ।
तुम्हें कैसे भूलूँगी...तुमने आज मुझे वह खुशी लौटाई हैं जो मुझसे मेरी गलती के कारण दूर हो गई थी माँजी मन ही मन बुदबुदाई ।
‘ मुझे माफ कर दे बेटा...।’ माँजी ने भावेश के बिस्तर पर बैठकर उसका मुँह अपनी ओर करती हुये कहा ।
‘ दूसरी खुशी कौन सी है, नहीं पूछेगा...।’
बेटे की आँखों में प्रश्न देखकर वह फिर बोली,‘ तू पापा बनने वाला है और मैं दादी और यह खुशी मुझे मेरी बहू अंजना ने दी है...।’ कहते हुये पुष्पा ने अंजना की तरफ देखा तथा उससे कहा,‘ दूर क्यों खड़ी है, यहाँ आ न, तेरा भावेश तेरा इंतजार कर रहा है...।’
पुष्पा अंजना भावेश के पास बैठाकर बाहर चली गईं तथा दीप्ति को फोन मिलाने लगीं । वह भी परेशान थी । बहुत दिनों के पश्चात् खुशियों ने उनके द्वार पर दस्तक दी है । वह अपनी जिंदगी जी चुकीं, बच्चों की जिंदगी में बेवजह दखल देकर अब वह ऐसा कोई काम नहीं करेंगी जिससे उनमें फिर से दरार आये । सच उन्हें आज जिंदगी से एक सबक मिला है । दीप्ति ठीक ही कहती कि प्यार देकर ही प्यार पाया जा सकता है ।
सुधा आदेश
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