Thursday, October 22, 2020

अविश्वसनीय सत्य

 


                ***अविश्वसनीय सत्य***


 

        अंजना ने सुबह उठकर घर की खिड़की खोली तो सुबह आठ बजे से पहले न उठने वाले दम्पत्ति के घर का खुला दरवाजा तथा बाहर तक पानी बहते देखकर वह आश्चर्य से भर उठी । रिया और पल्लव की बस आठ बजे तक आ जायेगी तथा रितेश के लिये भी नाश्ता और टिफिन पैक करना है, सोचकर वह अंदर आ गई तथा उसके हाथ मशीन की तरह चलने लगे । सब्जी छोंककर, आटा मला तथा बच्चों के लिये दूध गर्म कर उन्हें जगाया ।  

        बच्चों को तैयार कर, नाश्ता कराकर वह उन्हें स्कूल की बस में बिठाने के लिये बाहर निकली तो घर के सामने कुछ महिलायें को घेरा बनाकर बातें करते देखा किन्तु बच्चों की बस कहीं छूट न जाये इसलिये वह सीधे चली गई । वैसे भी छठी कक्षा में पढ़ने वाली रिया तथा चौथी कक्षा में पढ़ने वाले पल्लव के सामने बातें करना उचित भी नहीं था । जब वह लौटकर आई तब भी उन्हें वहीं खड़ा देखकर वह उनके पास रूक गई ।

        ‘ क्या तुमने रात में कोई आवाज सुनी ?’ उसे देखकर उसकी पड़ोसन रमा ने पूछा ।

        ‘ नहीं, क्यों क्या हुआ ?’ अंजना ने पूछा ।

        ‘ कल रात में अपनी शोभना जल गई । उसे अस्पताल लेकर गये हैं ।’

        ‘ क्या...?’ चौंकते हुये अंजना ने कहा ।

        ‘ अरे, मुझे तो लगता है कि उसे उसके पति उमेश ने जला दिया गया है ।’ दीपा ने कहा ।

        ‘ इतने विश्वास से तुम कैसे कह सकती हो ?’ रमा ने पूछा 

        ‘ रात्रि चार बजे मैं परिमल के लिये दूध गर्म करने उठी थी । उस समय जोर-जोर से चीखने की आवाजें सुनकर मैं और दीपक बाहर आये । उनके किचन की खुली खिड़की से हमने देखा कि शोभना के बदन में आग लगी है...वह बचाओ...बचाओ  चिल्ला रही है तथा उमेश मग से उसके शरीर पर पानी डालते हुये आग को बुझाने का प्रयास करते हुये कह रहा है...रात में तुम गैस बंद करना भूल गई थीं । तुम किचन में पानी पीने आईं । जैसे ही तुमने लाइट जलाई, आग लग गई । ऐसा लग रहा था जैसे वह यह बात दोहराकर उसे हिप्पनोटाइज कर रहा है । हमने सहायता करने के लिये दरवाजा खट्खटाया पर उसने दरवाजा नहीं खोला अंततः हम चले गये । बुरी तरह जल गई है शोभना । ’ कहते हुये दीपा के चेहरे पर मायूसी छा गई थी ।

        ‘ ऐसा कैसे हो सकता है । गैस सिलिंडर से गैस लीक होने से आग लगती तो क्या सिलिंडर बस्र्ट नहीं होता ?’ रमा ने कहा ।

        ‘ तुम सच कह रही हो रमा । इसके अतिरिक्त शोभना तो सदा सूती कपड़े पहनती थी । सूती कपड़े जल्दी आग नहीं पकड़ते । कल रात उनके घर पार्टी थी । देर रात तक शराब का दौर चला होगा । शोभना को इन पार्टियों से चिढ़ थी । कहीं ऐसा तो नहीं किसी बात पर उनका झगड़ा हुआ हो और उमेश ने उसे जला दिया हो ।’ अंजना ने अपनी शंका प्रकट की ।

        ‘ ओह ! जो भी हुआ बहुत बुरा हुआ...उसे बच्चों से बहुत प्रेम था । मेरा शिवम् उसके साथ बहुत ही खुश रहता था ।’ अंजली ने कहा । 

        आखिर वही हुआ जो नहीं होना चाहिये था । शाम तक शोभना ने अंतिम सांस ले ही ली । आश्चर्य तो अंजना को तब हुआ जब हफ्ते भर में ही उमेश ने वह घर खाली कर दिया । पता चला कि शोभना की मृत्यु के साथ ही पुलिस ने यह केस बंद कर दिया । हमारा सिस्टम भी...सदा पीड़ित का नहीं वरन् अपराधी का ही साथ देता है, सोचकर अंजना का मन विदीर्ण हो गया था । बार-बार उसके मन में यही आ रहा था कि कहीं उमेश शोभना की हत्या के इरादे से ही तो यहाँ नहीं आया था क्योंकि उन्हें इस घर में आये सिर्फ महीना भर ही हुआ था और इसी बीच यह हादसा...उनके विवाह को दस वर्ष हो गये थे किन्तु उसे कोई बच्चा नहीं था । उमेश इस बात के लिये सदा उसे प्रताड़ित भी करता था । उनका प्रेम विवाह था जिसकी वजह से शोभना के माता-पिता ने भी उसे त्याग दिया था । वह अकेली ही इस घुटन और स्त्रांस में जी रही थी । एक बार वह उसे अपनी आपबीती बताते हुए रो पड़ी थी । उमेश किसी से ज्यादा मिलता जुलता नहीं था जबकि शोभना न केवल सबसे मिलजुलकर रहती थी वरन् बच्चों की समस्यायें भी सुलझाती जिससे कॉलोनी के सभी बच्चे उसे बहुत चाहते थे ।

        अंजना के घर के एकदम सामने ही शोभना का घर था । जब भी वह घर का दरवाजा खोलती अनायास ही शोभना की याद आ जाती । एक दिन उसने देखा कि उस घर में एक नवदम्पत्ति प्रकाश और निवा आ गये । अंजना ने यह सोचकर चैन की सांस ली कि चलो अब शायद मन से वह शोभना की स्मृतियों को निकाल पाये किन्तु कुछ ही महीनों में उन लोगों ने घर खाली कर दिया अंजना ने कारण पूछा तो निवा ने कहा, ‘ हम यहाँ आकर मानसिक रूप से परेशान हैं लगता है इस घर में किसी आत्मा का वास है जो हर रात हमें दिखती है तथा कहती है मुझे मुक्त करो, मुझे न्याय चाहिये ।’

        अंजना को आत्मा वाली बात पर विश्वास नहीं हो रहा था किंतु निवा ने जो आकृति आत्मा की खींची थी वह शोभना से काफी कुछ मिलती थी । दो वर्ष तक उस घर में कोई नहीं आया । वह घर भुतहा घर के नाम से प्रसिद्ध होने लगा परेशान मकान मालिक ने पूजा भी करवा दी ।  एक दिन उसने देखा कि सामने वाले घर में सामान उतर रहा है । उनके एक छोटा बच्चा भी था । पहले किरायेदारों के कारण अंजना के मन में शंका तो थी पर फिर भी न जाने क्यों मन में आस थी कि शोभना बच्चों को बहुत चाहती थी अतः वह इन्हें कुछ नहीं कहेगी । शिखा और शशांक बहुत ही मिलनसार थे । उनका बेटा सुजय पल्लव के साथ उसके स्कूल में ही पढ़ता था अतः अक्सर उनके घर खेलने आ जाया करता था ।

        इसी बीच एक दिन रितेश ने कहा,‘ अंजना आज उमेश आया था मेरे बैंक में अपना खाता खुलवाने, उसके साथ एक औरत भी थी...शायद उसकी दूसरी पत्नी । उसने मुझे तो नहीं पहचाना पर मैं उस कातिल को कैसे नहीं पहचानता !! मन मारकर चुपचाप उसका काम करवाता रहा...कहीं कोई बिजनिस है उसका...। तुम सच कह रहीं थीं कि इस घटना को अंजाम देने के लिए ही उसने यह घर किराये पर लिया था ।’

        इतने दिनों पश्चात् अचानक रितेश के मुख से उमेश के बारे में सुनकर अंजना का मन यह सोचकर विदीर्ण हो आया था कि इस संसार में न जाने कैसे-कैसे लोग होते हैं !! रिया और पल्लव को स्कूल बस में बिठाकर लौट रही थी तभी उसे लगा कि आज शिखा ने सुजय  को स्कूल नहीं भेजा । कहीं वह बीमार तो नहीं...रितेश के आफिस जाने के पश्चात् वह शिखा के घर गई तो उसने देखा कि शिखा सुजय के सिर पर बर्फ की पट्टी रख रही है । उसे बहुत तेज बुखार है । 

        ‘ क्या हुआ सुजय को ?’

        ‘ पता नहीं कल रात में यह चिल्लाने लगा,’ मुझे छोड़ दो...मुझे छोड़ दो । इसके साथ ही इसे बुखार आ गया । ’

        ‘ क्या... ? लेकिन वह तो बच्चों से बहुत प्यार करती थी, वह सुजय के साथ ऐसा नहीं कर सकती ।’ अंजना बुदबुदा उठी ।  

        ‘ कौन क्या कह रही हो तुम ?’

        अंजना ने शिखा को सारी बात बताई तो वह रोने लगी ।

    ‘ धैर्य से काम लो शिखा । आज जब सुजय ‘मुझे छोड़ दे’ बोले तब तुम उससे पूछना,‘ तुम चाहती क्या हो ? तुम्हें तो बच्चों से बहुत प्रेम है फिर तुम मेरे बेटे को क्यों परेशान कर रही हो !! ’

        ‘ क्या ऐसा कहने से वह मेरे सुजय को छोड़ देगी ?’

        ‘ मैं पूर्णतः तो नहीं कह सकती पर मेरा मन कहता है कि सब ठीक होगा । वह बच्चे का अनर्थ नहीं करेगी ।’

        ‘ धन्यवाद अंजना, तुमने मेरे बच्चे की जान बचा ली । ’ दूसरे दिन शिखा ने उसके घर आकर कहा ।

        ‘ क्या हुआ...बताओ ? ’ 

        ‘ कल वह फिर आई थी । पल्लव जब ‘मुझे छोड़ दो ’ कहने लगा तब मैंने तुम्हारी बात दोहरा दी । तब उसने कहा मुझे मुक्ति दे दो । मैंने कहा बताओ मैं क्या करूँ ? उसने कहा कि मुझे आग से डर लगता है तुम अपने बेटे को एक मशाल दे दो तथा उससे कहो कि वह कहे अब तुम जाओ, मुझे छोड़ दो, कहते हुये वह मुझे घर से बाहर निकाल दे । मैंने ऐसा ही किया तुम विश्वास नहीं करोगी कि मुझे घर से बाहर जाता हुआ एक साया दिखाई दिया उसके साथ ही मेरा सुजय ठीक हो गया ।’ कहते हुए शिखा के चेहरे पर प्रसन्नता थी । 

        शिखा की बात पर भी अंजना को विश्वास नहीं हो रहा था कि इस साधारण से उपाय से आत्मा मुक्ति पा सकती है...अभी इस घटना को हफ्ता भर ही हुआ था कि रितेश ने बैंक से आकर कहा, ‘ अंजना, आज उमेश की दूसरी पत्नी उमेश के सारे बैंक एकाउन्ट के बारे में जानकारी लेने आई थी । उमेश के बारे में पूछने पर उसने उदास स्वर में कहा कि एक हफ्ते पूर्व न जाने कैसे उनके वर्कशाप में आग लग गई और वह जलकर मर गये ।’

        हफ्ते भर पूर्व...तो क्या शोभना की आत्मा ने मुक्त होकर ठीक उसी तरह से उमेश को जलाकर अपना बदला ले लिया जिस तरह उमेश ने उसे जलाया था । अंजना ने सारी बात रितेश को बताई तो वह हतप्रभ रह गये । आत्मा...बदला...इस अविश्वनीय सत्य को वह  स्वीकार नहीं कर पा रहे थे किन्तु जो हुआ उसे भी तो झुठलाया नहीं जा सकता था ।


--@सुधा आदेश



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