विषैला
कल रात
नाग देवता अपना
फन फैलाकर
फुंकारते हुए आये ...
कड़ाके की ठंड में भी
थर-थर काँपती उसकी देह को
क्षण भर निर्निमेष देखते रहे
फिर कुंडली मारकर
बैठ गए…
उनके आचरण पर
पहले वह घबराया
फिर अचानक अट्टहास
करते हुए बोला,
' रुक क्यों गये नागदेवता
क्या मुझ तुच्छ प्राणी से
तुम डर गए ?'
' भाई, तुम ठीक
कहते हो…
तुम जानते हो
मैं अकारण किसी को
नहीं डसता।
तुम्हारे कुकर्मो से
होकर व्यथित
स्वयं नारायण ने
मुझसे की थी प्रार्थना ।
अब तक मैं स्वयं को
संसार का सर्वाधिक
विषैला प्राणी था समझता
पर तुम तो मुझसे भी
अधिक हो जहरीले…
मेरा दंशित तो
पल भर में ही
हो जाता है
परमब्रह्म में विलीन
किन्तु तुम तो
खून चूस-चूसकर
निर्दोष लाचारों का
पंगु बना देते हो।
भयभीत हूँ कहीं
तुम्हारे खून में
मिला विष
मेरी देह में
कर प्रविष्ट
कहीं मुझे भी
तुम्हारी सदृश
निर्दयी,कठोर, पाषाण
हृदयहीन न बना दे ।'
सुधा आदेश
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