सांसो से जीवन, जल की छोटी-छोटी बूंदों से सागर , मिट्टी के एक-एक कण से धरती का निर्माण होता है वैसे ही जीवन की हर घटना हमारे जीवन की दशा और दिशा निर्धारित करती है ।
जब कभी भी समाज में छाई विसंगतियों , असमानतायें , कटु अनुभूतियों, वेदनाएं, कड़वाहटें अंतर्मन को आंदोलित करती हैं तब तक भावुक मन विचलित हो उठता है ।
वस्तुतः हमारे समाज में सदियों से व्याप्त कुरीतियां ,भ्रष्टाचार ,अंधविश्वास ,दहेज प्रथा , जाति पांति एवं धर्मांधता की जड़ें इतनी गहरी पैठ चुकी है कि उनसे निजात पाना कठिन प्रतीत हो रहा है । और तो और मानव निरंतर अपनी जड़ों से कटता जा रहा है । इंसान आज भौतिक सुख में इतना डूब गया है कि उसके लिए रिश्ते नाते गौण हो चुके हैं । वह अपनी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए एक डाली से दूसरी डाली पर बैठ इतराता फिर रहा है पर जब दूसरी डाली के कांटे चुभ चुभकर लहूलुहान करने लगते हैं तब उसे लगता है अपनी डाली जैसा सुख, माटी की सुगंध और कहीं नहीं है ।
सबसे ज्यादा दुख तब होता है जब इंसान, इंसान की भावनाओं को नहीं समझ पाता । दूसरे पर अत्याचार करते हुए, सामाजिक नियमों को तोड़ते हुए वहशी दरिंदा बन अपनों को नोंचने खसोटने में भी उसे शर्मिंदगी का अहसास तक नहीं होता । सुपर मानव बनने के प्रयास में दूसरे को टूटता, सिसकता देखकर भी उसकी आत्मा उसे नहीं झकझोरती । वह टूटन , घुटन से तड़पती रूहों के मध्य भी अट्टहास करता हुआ अपने निकृष्ट स्वार्थ में इतना लिप्त रहता है कि उसे सामाजिक ढांचे के चरमराने की भी परवाह नहीं है ।
अफसोस है तो सिर्फ इतना कि सदियों से जली तो सिर्फ नारी है । चाहे वह गृहस्थी को संभालती आम औरत हो या पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने का प्रयास करती कैरियर वुमन हो । सदा उसे ही अग्निपरीक्षा से गुजरना पड़ता है । टूटना और जुड़ना तो नियति का नियम है । टूटने में दर्द तथा जोड़ने में सुख का अहसास ही जीवन में निरंतरता एवं जीवंतता बनाए रखता है । जीवन के ऐसे ही खट्टे एहसास जहाँ हमें परेशान कर हमारी राह में रोड़ा बनते हैं वहीं जीवन के मीठे एहसास हमें कभी रुकने नहीं देते ।
इन खट्टे-मीठे एहसासों को मन के मोतियों में पिरोकर लक्ष्य को पाने के लिए आगे बढ़ते जाना ही जिंदगी है । जिसने जीवन के इस मूलमंत्र को अपने जीवन का हिस्सा बना लिया, वह जग जीत गया ।
सुधा आदेश
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