Monday, July 11, 2016

निशीथ के गहन अंधकार में

अंधेरों के वलय निशीथ के गहन अंधकार में अतीत की गहराइयों में डूबकर न जाने क्यों हो रही हूँ व्यथित ? अतीत... नैराशय और व्यथा से पूर्ण चाहती हूँ भुलाना परन्तु असंभव छलावा मात्र... रह-रहकर मंडराना मन-मस्तिष्क में अनकही विवशता,बेचैनी... न कब, किस घड़ी अतीत को छोड़ अभिशपत, अग्नि दग्ध ह्रदय को सावन की सुखद सलोनी बूँदों से कर शीतल, भविष्य के सुनहरे स्वप्नों की ओर हो पाऊँगी अग्रसर ।

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