Tuesday, March 22, 2016

मत खेलो ख़ून की होली

नफ़रत की ज्वाला में क्यों जलता मानव मन इंसान हो इंसान ही बने रहो मत खेलो ख़ून की होली । खुदा ने रचा हरा भरा चमन कोयलिया कूके डाली-डाली, छोड़ो मनोमालिन्य... मत खेलो खून की होली । इंसा है तो है गुलशन गुलशन नहीं तो तुम नहीं काश ! समझ पाते यह बात मत खेलो ख़ून की होली । ज़माने की रेत पर अपने निशाँ तो छोड़ो आत्मघाती बम बन, गुमनामी के अंधेरों न खोओ, मत खेलो ख़ून की होली । तुम जागोगे तो मानवता जी उठेगी खेलो ख़ूब खेलो रंगों... प्यार की होली पर मत खेलो खून की होली ।

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