मैं हुआ जब-जब
हम पर हावी
टूट गई संवेदनायें सारी
कुलीन प्रवृत्तियाँ होने लगी क्षीण
होने लगा मन विदीर्ण ।
श्वेत धवल खरगोशों ने
मारी जब कुलांचें
खोखला भुनभुना नींव पर स्थापित
आस्थाओं के महल
ढहने लगे अचानक क्यों ?
व्यक्ति ...
परिवार को टूटने से
बचा नहीं पाया
राष्ट्र की एकता के लिये
चिंतित होगा क्यों ?
अनिश्चित,अनैतिक,अमर्यादित
व्यवस्थाओं में फँसकर
क्यों और कैसे
कहाँ से कहाँ
आ गये हम !
टूटा ही है मानव
साँस अभी बाक़ी है,
बुझती साँसों को
मिल जाये जीवन
आस अभी बाक़ी है ।
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