Wednesday, April 9, 2014

एक मौका और दीजिये

एक मौक़ा और दीजिये 

 पाँच वर्ष पश्चात 
 खादी के 
कुर्ता पाजामे में 
सुसज्जित 
 सिर पर 
गांधी टोपी लगाये 
आँखों पर 
रे-बेन का
 काला चश्मा पहने 
 पेरों में 
रिबोक के 
जूते पहने 
 सुरक्षाकर्मियों के घेरे में  
एक बार फिर 
द्वार पर हाथ बांधे 
 व्यक्ति को देखकर 
हमने पूछा, 'कौन हो भाई,
 हमने पहचाना नहीं...।'

 'हम गरीबदास 
आपके सेवक... 
एक मौका और दीजिये। ' 

'आप वह गरीबदास नहीं हो
 जिन्हें हमने वोट दिया था... 
कंधों पर थैला लटकाये 
 चप्पल चटकारते, 
पेट को 
आंतों में धँसे 
 उस कमजोर और मरियल से 
व्यक्ति में समाज सुधार का
 जज्बा देख 
हमने सोचा था
हमारे मध्य पला बढ़ा 
 वह आदमी 
निश्चित रूप से 
 हमारी समस्याओं का 
हल ढूंढ पाएगा... 
पर तुम भी 
औरों की तरह ही निकले... 
जाइये...जाइये 
अब हमें और बेबकूफ 
मत बनाइये 
कहीं और जाकर 
वोट मांगिए। ' 

 'नहीं भाई 
हम वही गरीबदास है 
आपकी समस्याओं का
 हल ढूँढते-ढूँढते 
 हम स्वयं उलझ गये थे, 
आपकी मेहरबानी से 
 हमारी गरीबी तो हो गई दूर... 
एक मौका और 
दीजिये जहाँपनाह, 
जिससे अब  
आपकी गरीबी हम
 कर सकें दूर...।

@सुधा आदेश

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