Tuesday, November 22, 2011

पल



आज दुनिया जिस दौर से गुजर रही है उसमे हर गुजरता पल महत्वपूर्ण होता जा रहा है....जो पलो के महत्व को नकार देते वे स्वयं को भुलावे मे रखते है क्योंकि गुजरते पल लौट कर नहीं आते.... इस बात को शब्दों में कुछ इस तरह पिरोया हे,,,,,

दो पल की है ज़िंदगी


कतरा-कतरा बूँद-बूँद सजती रही ज़िंदगी,
कभी बिहंसती कभी चटकती रही ज़िंदगी।

शबनमी बुंदों ने जब-जब भिगोया तन मन,
सूरज की उजली किरण सी सँवरती गई ज़िंदगी।

पतझड़ की कंटीली हवाओं ने जब-जब भी दी चुभन,
तिनका-तिनका बेताहशा,बेतरतीब बिखरती  गई ज़िंदगी।

भागे ज़िंदगी की जद्दोजेहद के पीछे जितना ही,
उतनी ही छिटकती चली जा रही जिंदगी।

अरमानों को सहेजकर अलकों पर ,कहती है 'सुधा',
कैद कर लो सुख-दुख के पल,दो पल की है ज़िंदगी।

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