Sunday, December 22, 2024

अम्बेडकर सिर्फ अम्बेडकर

 संसद का पूरा सत्र ही हंगामे की भेंट चढ़ गया। जो संसद सार्थक बहस के लिए है, वह आज सिर्फ लोकतंत्र का मज़ाक बनाने के लिए राह गई है। आज न कोई सच्चाई कह सकता है न सुन सकता है। इन राजनीतिज्ञयों के लिए जनता तो मूर्ख है। वह न कुछ समझ सकती है, न गुन सकती है। इनके लिए गाँधी और अम्बेडकर एक ऐसे मोहरे हैं जिनके नाम लेने मात्र से इन्हें वोट मिल जायेंगे!

ज़ब तक कांग्रेस सत्ता में थी तब तक न संविधान खतरे में था न ही लोकतंत्र किन्तु 2014 के पश्चात् सब कुछ ख़तरे में पड़ गया क्योंकि वही भारत की एकमात्र ऐसी पार्टी है जिसने भारत को आजादी दिलवाई इसीलिए उसे ही देश पर शासन करने का अधिकार है। अधिकार भी सिर्फ एक परिवार को है, किसी अन्य को नहीं। 


इस एक परिवार ने अपने सिवा किसी को खड़ा ही नहीं होने दिया।

गाँधी और अम्बेडकर तो उसके लिए लॉलीपॉप हैं जिनका नाम लेकर वह दलितों और अन्य पिछड़ी जातियों को लुभाना चाहती है। अगर वास्तव में उसे दलितों के लिए कुछ करना ही होता तो वह आपने 50 -55 साल के शासन में नहीं करती क्योंकि आरक्षण का प्रविधान तो सिर्फ 10 वर्षों का था। बाद में इसे सिर्फ वोट प्राप्त करने का हथियार बनाया गया।


मुझे याद आ रहा है वह वाकया ज़ब प्रियंका गाँधी पहली बार चुनाव प्रचार में उतरी थीं तो पेपर में खबर छपी थी कि जिस झोंपड़ी से इंदिरा गाँधी ने चुनाव प्रचार शुरू किया था वहीं से प्रियंका गाँधी ने शुरू किया है। इस खबर के साथ झोपड़ी तथा प्रियंका गांधी की फोटो भी थी।


संविधान निर्माण की तीन समितियों के अध्यक्ष पंडित जवाहर लाल नेहरू थे, तो दो-दो समितियों के अध्यक्ष सरदार वल्लभ भाई पटेल एवं डॉ. राजेन्द्र प्रसाद थे और केवल एक समिति के अध्यक्ष थे डॉ. भीमरॉव अम्बेडकर। फिर ऐसा क्यों है कि भारत की हर राजनीतिक पार्टी भारत के संविधान को बाबा साहेब अम्बेडकर का दिया हुआ संविधान कह कर अपना उल्लू सीधा करना चाहती है। क्या अन्य लोगों का संविधान के निर्माण में कोई योगदान नहीं था।


मेरे विचार से जितने महत्वपूर्ण संविधान सभा के अध्यक्ष एवं उससे जुड़े अन्य सदस्य थे उतने ही महत्वपूर्ण भारतीय संविधान की मूल प्रति को सजाने वाले चित्रकार नंदलाल बोस थे। नंदलाल बोस और उनके शिष्य राममनोहर सिन्हा ने मिलकर संविधान की मूल पांडुलिपि को सजाया था।नंदलाल बोस ने अपने छात्रों के साथ चार साल में संविधान को 22 चित्रों और बॉर्डर से सजाया था।



Wednesday, December 11, 2024

माता-पिता का बच्चों के प्रति दायित्व

 नींव के पत्थर हैं ये

तराशों इन्हें 

मुरझा न जायें  

सम्भालो इन्हें।


आज विज्ञान ने भी सिद्ध कर दिया है कि बच्चों में संस्कारों की जड़ें माँ की कोख में ही पड़ने लगती हैं। बच्चों के साथ समय बिताने, उनके मासूम प्रश्नों का उत्तर देने, उन्हें नैतिक ज्ञान की शिक्षा देने का काम बच्चे की पहली शिक्षक माँ का है, उससे बच्चे आज वंचित हैं। आज के आपाधापी के युग में अधिकतर माता-पिता के पास अपने बच्चों के लिए समय ही नहीं है। 


शिक्षा प्रणाली भी बच्चों को व्यावहारिक या नैतिक शिक्षा देने की बजाय किताबी शिक्षा ही देती है। एकल परिवार तथा एक ही बच्चे की अवधारणा ने पारिवारिक ढांचे को छिन्न-भिन्न कर दिया है। अकेला बच्चा अपनी बात कहे भी तो किससे कहे? बच्चों को अपने स्वप्न पूरा करने का माध्यम बनाने की बजाय उन्हें अपने स्वप्न स्वयं देखने और उन्हें पूरा करने का हौसला दीजिए। 


बच्चों की सफलता-असफलता सिर्फ उसकी ही नहीं, पालकों की भी है। व्यर्थ दोषारोपण करने की बजाय उनके मानसिक स्तर पर उतर कर उनकी समस्याओं को समझ कर उनका मार्गदर्शन करें, उन्हें आपने ध्येय में सफलता प्राप्त करने के लिए कर्मठता का महत्व समझायें तभी वे बच्चों को शानदार जीवन के लिए तैयार करने के साथ जिम्मेदार नागरिक बना पाएंगे। 






Wednesday, December 4, 2024

यह कैसी प्रवृति

 आजकल sleep divorce और grey divorce की बहुत चर्चा हो रही है। Sleep divorce अर्थात एक ही घर में रहते हुए अच्छी नींद (किसी को डिस्टर्ब न हो ) लेने के लिए युगल अलग -अलग सोने लगते हैं जबकि ग्रे डिवोर्स का मतलब है, जब कोई दंपती 50 साल या उससे ज़्यादा उम्र में तलाक लेता है। इसे सिल्वर स्प्लिटर्स या डायमंड तलाक भी कहा जाता है। ग्रे डिवोर्स शब्द का इस्तेमाल बीते कुछ सालों में ही लोकप्रिय हुआ है. हालांकि, अब 15-20 साल की शादी के बाद अचानक रिश्ता टूटने के मामलों को भी ग्रे डिवोर्स कहा जाने लगा है।

आज के भौतिकता वादी परिवेश के कारण रिश्तों में आती संवेदनहीनता, बदलती परिस्थितियों में बदलती मानसिकता के ये by product हैं। सच तो यह है कि इंसान आज इतना आत्मकेंद्रित होता जा रहा है कि उसमें हम की जगह मैं का तत्व अधिक प्रभावशाली हो गया है। वह शायद यह नहीं जानता कि मनुष्य भले आज अकेला रह ले लेकिन एक समय ऐसा आता है ज़ब सारा रुपया पैसा धरा रह जाता है, व्यक्ति की आँखें अपनों को खोजती हैं। ज़ब कोई रिश्ता ही नहीं रहेगा तो अपना कोई कहाँ रहेगा?

आज लोग बड़े गर्व से कहते हैं कि हमें किसी की आवश्यकता नहीं हैं। सीनियर सिटीजन के लिए बनाये जा रहे रिटायरमेंट होम में फ्लैट लेकर रह लेंगे या हम तो ज़ब तक चलेगा अलग ही रहेंगे क्योंकि वे समझौता नहीं करना चाहते लेकिन मैं कई ऐसे लोगों को जानती हूँ जिन्हें अंतिम समय में बच्चों के पास आना पड़ा, उनकी सहायता लेनी पड़ी।


भूत और भविष्य के दायरे से मुक्त वर्तमान में जीने वाले यही सोचते हैं कि उन्हें कभी किसी की आवश्यकता नहीं पड़ेगी लेकिन वे भूल जाते हैं कि भले ही इंसान अकेला आता है, अकेला ही जाता है किन्तु परिपूर्ण जीवन का एहसास रिश्तों के बीच रहते हुए ही मिलता है। राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त की कविता ‘मनुष्यता’ की पंक्तियाँ आज भी उतनी ही प्रेरक है जितनी कल थी…


यही पशु–प्रवृत्ति है कि आप-आप ही चरे

वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।


🙏