संसद का पूरा सत्र ही हंगामे की भेंट चढ़ गया। जो संसद सार्थक बहस के लिए है, वह आज सिर्फ लोकतंत्र का मज़ाक बनाने के लिए राह गई है। आज न कोई सच्चाई कह सकता है न सुन सकता है। इन राजनीतिज्ञयों के लिए जनता तो मूर्ख है। वह न कुछ समझ सकती है, न गुन सकती है। इनके लिए गाँधी और अम्बेडकर एक ऐसे मोहरे हैं जिनके नाम लेने मात्र से इन्हें वोट मिल जायेंगे!
ज़ब तक कांग्रेस सत्ता में थी तब तक न संविधान खतरे में था न ही लोकतंत्र किन्तु 2014 के पश्चात् सब कुछ ख़तरे में पड़ गया क्योंकि वही भारत की एकमात्र ऐसी पार्टी है जिसने भारत को आजादी दिलवाई इसीलिए उसे ही देश पर शासन करने का अधिकार है। अधिकार भी सिर्फ एक परिवार को है, किसी अन्य को नहीं।
इस एक परिवार ने अपने सिवा किसी को खड़ा ही नहीं होने दिया।
गाँधी और अम्बेडकर तो उसके लिए लॉलीपॉप हैं जिनका नाम लेकर वह दलितों और अन्य पिछड़ी जातियों को लुभाना चाहती है। अगर वास्तव में उसे दलितों के लिए कुछ करना ही होता तो वह आपने 50 -55 साल के शासन में नहीं करती क्योंकि आरक्षण का प्रविधान तो सिर्फ 10 वर्षों का था। बाद में इसे सिर्फ वोट प्राप्त करने का हथियार बनाया गया।
मुझे याद आ रहा है वह वाकया ज़ब प्रियंका गाँधी पहली बार चुनाव प्रचार में उतरी थीं तो पेपर में खबर छपी थी कि जिस झोंपड़ी से इंदिरा गाँधी ने चुनाव प्रचार शुरू किया था वहीं से प्रियंका गाँधी ने शुरू किया है। इस खबर के साथ झोपड़ी तथा प्रियंका गांधी की फोटो भी थी।
संविधान निर्माण की तीन समितियों के अध्यक्ष पंडित जवाहर लाल नेहरू थे, तो दो-दो समितियों के अध्यक्ष सरदार वल्लभ भाई पटेल एवं डॉ. राजेन्द्र प्रसाद थे और केवल एक समिति के अध्यक्ष थे डॉ. भीमरॉव अम्बेडकर। फिर ऐसा क्यों है कि भारत की हर राजनीतिक पार्टी भारत के संविधान को बाबा साहेब अम्बेडकर का दिया हुआ संविधान कह कर अपना उल्लू सीधा करना चाहती है। क्या अन्य लोगों का संविधान के निर्माण में कोई योगदान नहीं था।
मेरे विचार से जितने महत्वपूर्ण संविधान सभा के अध्यक्ष एवं उससे जुड़े अन्य सदस्य थे उतने ही महत्वपूर्ण भारतीय संविधान की मूल प्रति को सजाने वाले चित्रकार नंदलाल बोस थे। नंदलाल बोस और उनके शिष्य राममनोहर सिन्हा ने मिलकर संविधान की मूल पांडुलिपि को सजाया था।नंदलाल बोस ने अपने छात्रों के साथ चार साल में संविधान को 22 चित्रों और बॉर्डर से सजाया था।